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१५वीं शताब्दी फाग
००००००००००००० :: नेमिनाथ फागः:' (राजसर)
१५वीं शबाब्दी में फागु कृतियों के विषय, उदेश्य, और शिल्प में परिवर्तन हुए। भाषा अधिक संयत हुई। भाव व्यवस्थित हुए। काव्य में प्रवाह और सरलता सर्वत्र दिखाई पड़ती है। इतना सब कुछ होते हुए अधिकार कृतियां नेमिनाथ के जीवन पर ही उपलब्ध होती है। बिविध कवियों ने विविध नामों से नेमिनाथ के असाधारण चरित्र का उल्लेख किया है। इसर कृत्रियों में प्रयोत्तम पंचपंडब फागु, स्थलिमा फागु, रावपि पार्श्वनाथ का वीरापल्ली पार्श्वनाथ फाय देवरत्न मरि फागु व बसत फागु आदि कृतिया विविध विषयक मिलती है जिनपर हम संवेध मै विवेचन प्रस्तुत करें।
प्रस्तुत कृति काव्य की बष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इन कृषि की काव्य मुबमा बिस्कुल वैसी ही है बैनी जिनपड्मसूरि के स्थलिभद्र फागु की। यहां तक कि दोनों कृतियों की कड़िया भी २७ है। वर्णन की पद्धति काव्य की मुबमा, भाषा की सरलता, अनुप्रासात्मकता, छंदों का साम्य, शब्द चकन की मसूपता मावि सब इष्टियों में प्रस्तुत काम स्थतिमा का मिलता जुठला है। इससे यह कया जासकता है कि कवि प्रस्तुब राब की श्री राखरपूरि में अवश्य ही इस किला राब को या मे या उसी साली मी बाधि कृषि का परिवील किया हो, मा कपि रायर अवश्य ही सारे विी पीस पीच्च प्रभावित हुए हो। राबोर इरिमेह एबमा सारनी गे सन्धि में लिखी गई है। राबर का बन्ध कोष समिति कध, watक नारी प्रधान गढव प्रबन्ध, THE I Mr की यायावती पर पंजिका नाम की टीका पी मितवी श्री साईसीका बा विनोद कथा संग्रह का उल्लेख किया
ग. गसरा ने मामा-कलिका, स्यावाव-दीपिका, रत्नावतारिका मागीय भाग. गोखरामाचीन पुर्वर काम का भी १०माला करियो की दरार कावीर स्त्री ...मर कतिकोः श्री मोहमहाल बीब खाई मांगा