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________________ बहे चवल मंगल दियई गोपिय वदिय जयजयकार हे विप्र वेदणि (सुणिय) तहि, पति नेमिकुमार अहे कुरंगीए दीउ नयभुले करून पलाव कोइ अहे पाणिग्रह तुह सामिय पता जीव वा होय हे विगु पिण इयर परिपका बइ जीव हाल अहे पाय मेल्डि रह वालिया बलियउ नैमिकुमार इस प्रकार समुधर की इस कृति में विषय वस्तु की इष्टि से मौलिकता न होते हुए भी फागु काव्य के शिल्प, कवित्व, गेयता, व काव्य मोष्ठव एवं प्रवाह उल्लेखनीय है। भाषा में पर्याप्त मरहता है। दोहा छंद से कार में और अधिक प्रवाह आ गया है इस प्रकार वीं बताब्दी की फागु रचनाओं पर विचार करते समय हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि सं० १९. में कवि श्री जिनपड्मसूरि विरचित स्थलिभद्र कागु की सबसे महत्वपूर्ण तथा काव्यात्मक कति है। लिभद्र फागु के अतिरिक्त १४वीं साब्दी में जो भी कृतियां मिलती है वे साधारण ही है। १५वीं बाब्दी के फागु परंपरा में कुछ महत्वपूर्ण कृतियां मिलती है जिनपर म आगे के पडों में प्रकाश डामें।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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