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नैमिनाथ फागु'
(अनुचर)
१४वीं शताब्दी के उत्तराईध में कवि समुधर कुर्व नैमिनाथ फागु काव्य और मिलता है। काव्य यद्यपि अप्रसिद्ध है। इस काव्य की एक प्रति पाटण में मुनि जिन विजय जी को मिली है। इस कृति का श्री पं. रमणीक विजय की एक संग्रह पोथी के अन्त में OEM से माल होने का उल्लेख मिलता है। कृति की एक प्रति श्री अगरचन्द नाहटा की संग्रह पोथी में भी सुरक्षित है। श्री देशाई ने भी इसका संकेत किया है। नेमिनाथ के इसी कृत ने अनेक कवियों का मन आकर्षित क्यिा है विविध रूपों में अनेक काव्य यथा पाल्हण का सं० १२० का भावुराम, विनयचंद्र (सं० १३२५ में विरचित नैमिमाथ चतुष्पादिका तथा १५वीं शताब्दी के राजसरसूरि तथा जयशेखर सूरि नामक प्रसिद्ध जैन कवियों ने नेमिनाथ पर का लिखे है जिन पर आगे विचार किया जायगा। इसी तरह माणिक्य सम्बर मूरि का नैमिश्वर चरित फाग बंध (सं० १४.) त्या रत्न मन्डल गामि विरचिa(०१५००) नेमिनाथ बबरस फागु और नारी निरास फागु महत्वपूर्ण कृतियां है।
प्रस्तुत नेमिनाथ फाय काव्य में कवि प्रारम्भ में तमाम का उल्लेख करता है। इवारका के यादवो का रैवतक पर्वत के सहस्त्र-आमजन में बसम्व विहार के लिए जाना, बन में बनरापि की अमा, मादब लियों की उस्लामियी क्रीडा मयूर कोजल का मधुर रव और उस पर प्रमरों का वार, और पैसी स्थिति में न का बारी बावन और मार गोपियों के साथ नृत्य, इसके पश्चात मेमि और कृष्ण का चाळीड़ा को जाना और वही कृष्ण की रामियों का मेमि को विवाशिष बनावन, का विवादेवी, सामनी और सत्यपामा आदि सब ने
१- प्राचीन का बहा गडेसरा, प्र. ८.r
बही प्रस्तावबा . - प्रधान-पोषी ४९ पा २९५-९०। ४. न मुर कवियोः मोहनलाल वैवाई भाग १.४