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मिलकर उन्हें दूल्हा बनने को बाध्य कर दिया। बरात धूम धाम से चढ़ी पर पतुओं के करम कन्दन ने नेमिनाथ को विवाह से परांगमुख कर दिया, वे गिरनार पर जाकर दीवित हो गए।
काव्य का कथासार यहीं समाप्त हो जाता है। काव्य की पाषा अत्यन्त सरल है। २८ कड़ी का यह पूरा काव्य दोहा छंद में लिखा गया है। काय का बंध पुराने आरम्भ कालीन काव्यों की भाति सरत है।इहे मैसामान्यतः आवरप्रास या आतर यमक सामन्यतः नहीं है परन्तु हरएक पंक्ति के प्रारम्भ में मंद परिभाष से विशेष अरे शब्द आता है दूसरी पक्ति में अहे शब्द भी मिलता है। जो स्पष्ट है कि इसकी गेयता का सूचक है । कई फागों में वर्णित फागु नामक दहा विशेष के चरवाईध के अन्त में आने वाली बमक योजना इसमें नहीं मिलती। वस्तुतः छंद सादा होने सकाव्य में प्रवाह बीर बेग का उन्मेष करता है गो वन विहार करने वाले नर नारियों का उत्साह व रास का उद्देश्यमूचित करते है। कृति के कुछ काव्यात्मक स्थल उल्लेखनीय है:- कवि का सहस्त्राप्रवन का प्राकृतिक वर्णन देखिएः
के बमु ज्यडर रलियावउ अनु बिहसिय वपराय जी वाला बेग्र बिधिरी केतकी सहि जाए अरे पाउल मंचर पारखी चमड़ को सेवनी कर पिय पारि मह है का बैंड भोलि पाई जोगाया, मोरि भार बात
भी अमरा रमन सकाइ किीि किम्मरि मावि बोहरि रिस पनि आफ्ना बाबल्डी बाति। को विमा पबबाहि गोलि बोल सहा नाति
प्राचीन का डा. डिसरा, प्रस्तावना -भाग पृ. १०-११॥ देर बरपाक मा चार काय काव्योः श्री के०बी. पास फाया मुजराती धमाका ५८ - देविष- बही .१६-01
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