________________ () लोहिहि पडिया हिया, मम्म मुह बयणि न भीजह () कम्म जयल जसु कहलाईन किर मयण हिंडोला चंचल चपल तरंग चंगु जसु नयण कचोता (ट) सोहा जासु कपोल पालि जमु गालिम-पूरा (8) मेहारव भर उलटिब जिम जिम नाचइ मोर तिम तिम माणिपि सलमला माहीता जिभ चोर / इस प्रकार ये अलंकार, काव्य में एक अपूर्व नाद की पुष्टि करने में योग स्थितियों पर भी प्रकार डालती है।राजनैतिक पृष्टभूमि में चरित नायक के पिता सक्टार का वध, राजकीय अप्रसन्नता, विद्रोह आदि आ जाते है और बद्गत संक्रातिकालीन स्थिति का एक चित्र स्पष्ट होता है। धार्मिक अवस्था भी स्पष्ट होती है कि उस समय भी मुनियों का संयमत्री से विवाह होता था। रिषियों की मार पर विजय, अधालु भक्तों की धर्म-प्रवणता तथा मुनियों द्वारा जनसाधारण को शान्ति तथा आध्यात्मिक संदेश और राजकीय खटपटों में भी धर्म प्रामधारा के रूप में अजस्त्र प्रहमान था। जहा तक सामाजिक रीति रिवाजों अथा स्थितियों का प्रश्न है, वह भी इससे स्पष्ट हो कि राजघराने के बावकों में किस पर विकास पर कर मया या वारस्परिक ईवी-देव और राज्य सिम्मा का पार मात्व पाण्या प्रथा भारतब भी प्रचलित धीमी केहवराम शास्त्री ने भी इसके विकासका लिा / ' फागु और राम ने की प्रथा भी विद्यमान थी, और होम सि प्रकार काम होनृत्य और राब, गरबा, पर मादि क मियों के माचरण और चतुर्मास की विधि की स्पष्ट होगीचा पालिका देवमाय तथा अन्य किसी प्रकार का मामी बार किसी भी स्थान पर अपना चतुर्मास कर सकी है। पाली और वैश्या दोनों प्रधानों की सम्यक् व्यवस्था का भी वर्षम मिलना - - - - - - या दिशशती सीमा पर विक्सि।