________________
है। इन्हीं सब मूल प्रवृतियों के आधार पर प्रस्तुत रचना का मूल्यांकन किया जा सकता है।
जही तक स्थूलिभद्र फागु के रस का प्रश्न है, यह बहुत ही स्पष्ट हो जाता है कि कृति में कवि ने प्रमुख कम से श्रृंगार का वर्णन किया है और यह सब भी है कि श्रृंगार अपनी सम्पूर्ण सजा के साथ अपने स्थायीमाव सहित निम्पन्न होता है। परन्तु श्रृंगार के इस कोड़ में वीर और निद भी बलने हुए परिलक्षित होते है। मार और स्थूलिभद्र का संयमयुध अवश्य ही वीर रस का वातावरण प्रस्तुत करता है। लौहपाट का मा हृदय रखने वाले उस बीर ने कामदेव वा रतिवल्लम के, जो संसार के बड़े बड़े वीरों के हृदय में तीक्ष्म र की भाति चुपने वाला था, मद को बुरी तरह बिदीपं कर डाला। उसका कामरथ बतशव खन्डों में चूर होकर धराशायी हो गया। संयमत्री-हार स्थलिभद्र की इसी संवम पूर्ण वीरता में वीर रस निम्पन्न होता हैऔर अन्त में स्थूलिप इस समरागण में किस प्रकार अपनी ध्यान या संयमरूपी तेज तीक्ष्ण तलवार से अपने प्रतिद्वन्दी को विमष्ट कर देता है. उत्साह की व्यंजना देसिप
बइ बावन्तु म मोडराउपिनि माथि मिया डिर फार मडाणिव मयनमा समरंगवि पाटिल कुसुम बुढि पुर करइ
पु जाकारो धनुधन पाइलिलाब पिषि बीब मारो
मम्ब बोधिरि धूलि भइव वो माह पहायो पनि विवि मि म सरसामानो।
परमार और बीर दोनों रसों का बमम त में कवि ने निवेद में कर दिया है। कोणा को प्रयोग कर, काम वियव कर, मुनि पुनः वैराग्य में उसी पथ पर चल को बार अपने गुरु के पास विजयीवीर की भाति प्राय होते है।
LLLL
--
१- प्राचीन कानुसाइः डा. बाबरा.