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________________ 387 चिंतामणि परिहरवि अवण पत्थर गिहणेइ तिम संजमसिरि परिणएवि बहुधम्म समुन्चल पा लिंगइ हुड कोस वा पसरंत महाबल पर जीवन की समस्त साधना से अपने सम्पूर्ण योवन का अयं चढ़ाने वाली कोश का काम तब मूञ्छित हो गया, जब मुनि का घोर शीलवत एवं बारिश्यक संयम स्पष्ट हुना। वीतरागी को मगध करने वाला और अपने दृढ़ निश्चय मेहटा कर विमोहित करने वाला अब तीनों लोकों में कोई नहीं था। मार के सब मोहन, मादन और बशीकरण सब मंत्र तंत्र व्यर्थ सिद्ध हो गए। काम का पराभव और मुनि की विजय मिस्वंदेह शम की श्रृंगार पर विजय थी। कोशा ने यौवन का लोभ बिताया, नारी हृदय की दुर्बलता को बार बार सामने रक्सा, पर संयम की आम में विकास अलस गया। भाम के स्फुलिंग उड़ने लगे और कोशा और काम दोनों हतप्रभ एवं हतवर्ष हो गए। कोशश की स्थिति ठीक ऐसी ही हुई जैसी महात्मा बुध को श्रृंगार एवं सज्जा से रिझा लेने का अभिमान करके आई हुई वैशाली की प्रसिद्ध वारांगना आम्रपाली की हुई थी। स्थूलिभद्र अटल रहे और अन्त में वह उनके चरणों पर गिर पड़ी। मुनि ने उसे प्रबोध दिया: पहिला हिवडा कोर कहा जुम्बाप का लीजा भारि संससिरिरिक जीवा अपि बोला कि मह मिति हो बका भवपाले जोमा मोबा मारी हार गई। काम बाको के हाव-भावों और आयात्मक रविना का अभिनय समान हो गया। उस पयों से काय का गेय स्मक कहलाता जाना बिइप होवा पीवि talwar है और उत्कृष्ट अभिनय के सभी गुप विनाम है। मा वि स विनिम्न चिों इवारा स्पष्ट होता है। बलकारी ग स्वाभाविक मिवार काव्य के कलात्मक-पथ को अपूर्व निवार बेवासी गोविय की ही मासि इस कृति में सरसता, मधुरता और कोमलाल पदावळीथा मकारों का सर्मिक वर्णन है। मनसा और उत्तवानों की हो /
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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