________________ सौरमित चम्पा और केतकी के कुसुमित पुष्पों से भरी हुई कबरी और मुन्दर परिधान सभी सौन्दर्य मुक्मा में योग दे रहे है। बषय केतकि गाइ कुसुम सिरि पुंच भरेइ अति आठ सुकमाल वीर बहिर पि पहिरेइ लहलह लहलह ए उरि मोतिय हारी रमरण रबरष रमरण ए पगि मेकर सारी मगमग मगमग जगमग प का निहिं बर कुंडल मलहल मलइल मलइल ए भापरह मैडल / उसका कामदेव के बढ़ग की माति देणीम्ड सरल तरत और श्यामल रोमाकी दण्ड उल्लेखनीय है विक्षस्थल की उपमा भी उस समय की .कतियों में अति नूतन है। कल्पना और उपभानों में अतिरंजमा नहीं होकर सरसता एवं स्वामा बिकता है। तुंग पयोहर उल्लसह सिंगार थबक्का कुसुमबा णि निव अभिय कुंभ किर थापपि शुक्ला इंग पयोधरों की उपमा श्रृंगार के पुष्प स्तकको अथवा कामदेव के अमृत कलवों के देकर कवि ने उक्ति वैवध पर्व सुन्दर प्रेक्षाओं का परिचय दिया है। कोश ने अंगार और समया के बल पर ही उसे अब सेना बारा। आगे काल, क्षास्थल पर पर बुरी, कामों में कामदेव के बोला की मावि मानों की बमक, कामदेव के विकास मन्त्रों की बात उसकी बाप, काबबरमरित लास की कातिनामि, क-गावल्य लिन मान, मन की मावि दर उसके मपल्लव भाव को पहले मुगर की खिों पर ध्वनि, मात की पाशि उसके अपर बि, बया की भावनावली, बनी हुई रतिलीम का साकार का, सलोन मयन व्या अनेक गमावोस गुगसम्पन्ना कोश के नाशित जबर मार टन भापति गिनि सिरि संथा काई बोरामा बढि fee पुन र मैडल बोदेड बाबा //