SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . मुनि का तेल देखकर अपने से ही उसके हाथ ऊपर उठ जाते है। करबध कोश की विचित्र स्थिति हो जाती है। बाजलि देखकर मुनि उसे कहते है."धर्मलाभ। मंदिर तोरणि आविया मुणिवा पिक्सेवी बम क्यि वित्तिहि दासडिय बेगि जाइ बधावी वैसा अतिहि उतावलि य हारिहि लहकती आवीय मुषिवर रायपासि करयल जोडती / "धर्म लामा कह कर मुनि उससे विहार के लिए चित्रशाला मागते है। कोश पर उल्लास में इन बड्दों का कुछ भी असर नहीं होता। उसने सोचा अभीष्ट मिल गया पर उसे क्या पता कि विलास में डूबे रहने वाले स्थूलिपद्र अब जिनेन्द्रिय स्थूलिभद्र मुनि हो गए है। मयूरों की मधुर ध्वनि में और मेह की पट्टी में कोशा अपनी स-सुधा के गर्व में डूब जाती है। सत पर पदी पड़ जाता है और उस वीतरागी को अपने अलौकिक श्रृंगार और नस-रिस की सजावट से स्खलित करना चाहती है. कवि ने उसके यौवन-उन्माद व्या सौन्दर्य सुषमा के अनेक मुन्दर चित्र खीचे है। नख शिख वर्षन में कवि श्री जिनपद्मसूरि मे अपश की समस्त काव्यात्मकता एवं रसात्मकता ही रेल दी है। कोश का बाक बन्या बनना बनेगारिक उपादानों और अकिरनों से अपने शरीर को बबामा उल्लेखनीय कवि का गाविस अत्यन्त असाधारण बम पड़ा है। नायिका की गति , रक्षका अंगरराम चुरों की मधुर ध्वनि, बेनी, रोशावळी, यवस्था आदि सबको कवि ने अनूठे उपमानों और गुन्बर उत्प्रेवानों से संपोबा है। अबपिड काम में मिलने पर इस संतिकाल में इनका प्रयोग होमा निविड महत्वपूर्ण है। मा विकास वोह मन काटि. बार शिरक माटि / 1. प्राचीन का ग्रा. डा. साडेसरा पु.॥ प्राचीन काम पाडेसरा पु.॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy