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________________ 381 विजय। इन दृश्यों की काव्यात्मकता तथा कला सम्बन्धी प्रवृत्तियों का अध्ययन यही संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है। जिनपद्म सूरि ने फागु के वर्षों में परंपरा के निर्वाह का ध्यान रखते हुए भी पर्याप्त स्वतन्त्रता का उपयोग किया है। माव और कलापक्ष दोनों ही बड़े सबल बन पड़े हैं। कवि ने स्थूलिभद्र का वर्णन भी किया हैमारियों के स्प-चित्रण में बहुधा कवि सम्ल होते ही है पर पुल का म तथा चारित्रियक चित्रण में कवि ने अभूतपूर्व चमत्कारिकता की पुष्टि की है। एक उदाहरण देखिए: अह सोहग सुन्दर स्ववन्तु गुनमावि मन्डारो कंचन जिम फलकन्त कत्ति संजय-सिरि हारो / कंचन जिम मलकन्त कन्ति और फैजन सिरि हारो- दो उक्तियों में की कितनी तीन अभिव्यक्ति है, जिसमें यौवन और संयम दोनों का एक ही साथ परिचय दिया गया है। सर्व प्रथम प्रकृति-वर्णन को ही लीजिए। कवि ने वर्ष का अपूर्व वर्णन किया है। वी-वर्णम पूरे तीन छन्दों में हुआ है। अब्दों की अप्रासात्मकता, काव्य की ध्वन्यात्मकता, पावस की प्रचन्डता, विपतियों का गर्जन, पाराधरों का दुराधर्ष प्रकोप, अजस्त्रष्टि तथा विरहिनी कोश का प्रबंपिक इमा-किशमी सहरमा चित्रित किया गया है। रसात्मकता और गमवों की परमात्मा वैविण मिरमिर मिरमिरि रितिरि प हा परिसी सडक बलहा र वाला बाशि भरार बार घरहर र विरहिदि यमुबह किरणी कोरा का मन कर गया। मेव का मार मर्डन ज्यों-ज्यों होता था, मन को काम के बीच र यो वा मतियों का मानन्द और केतकी का मौरमित भवनाम हराकर कोश को पालो। १-पान का ग्रा.श्री डा. साडेसरा पु... .मी.
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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