________________ से रचनाकार ने काम विजय की घटना के सफल निर्वाह के लिए तथा श्रावकों के सोल्लास गाने और कीड़ा करने हेतु ही इस फागु की पुष्टि की है। कुसुम इटिठ मर करह बुदित छ जयजयकारो धनु धनु राजु थलिभड्द जिणि जी भारो' बन्दउ सो सिरि धूलिद जो जगह पहाणी मिलियउ जिणि जगि मल्लसल्लर इबन्लहमापो खरतरगच्छि जिणपदम सूरिकिय फागर मेवर खेला नाच ई चैत्रमा चि रंगिहि गावेवर / इसकृति से आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्यकारों की काव्यात्मक प्रौढ़ता परिलक्षित होती है। अनेक स्थल काव्य-माधुर्य के हलकते रव-स्त्रोत है। काव्य की अनुप्रासात्मिकता ध्वनियों की अनुकरणात्मक, अलंकारों की प्राकृतिक छटा, काव्य की नादात्मकता, माधुर्य और प्रसाद का स्वाभाविक निर्वाह भाषण में असाधारण प्रवाह अब्द की कोमलकान्त पदावली, रसात्मकता प्रभृति मधुर-चित्रमों का अनूग समावेश है। नहीं होकर वर्मा व से प्रारम्भ हवा है. इसी का भी स्पष्ट to एखी कृतियां बसन्तु बर्षन के अतिरिक्त भी किसी भावा प्रारम्भ की जा सकती थी और काम प्रवर्तक बन्य की पलिदिनी काम में पीस रागात्मकता क्या बरसता का समावेश किया था. मया / इसरे चित्र में कवि ने कोश का रूप ' विन किया।म बिस की विमा , पूर्व काम-सौष्टव एवं रसात्मकता की परिवाक्षिका है। बायो माविका के हाव-भाबों, कटाधों का तथा मास की इबा और पीक सीमों का चित्रण है, और अन्त में नायक की काम -