SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 414
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हाव भावों से अनेक कला-बाजियां दिखाई, पर बितेन्द्रिय स्थूलिभद्र तो लौह घट हो गया था। कोश हार गईं, पुनि की चारित्रिक दृढ़ता के समक्ष उसके मारे राग-रंग हाव-भाव और अंगराग मलिन पड़ गरी स्थूलिमन की काम पर अभूतपूर्व विजय हुई। वे चार माह तक उस घोर वैलासिक बातावरण में रहकर भी उससे असंपृक्त बने / रहे। अन्त में कोग को प्रबोध देकर पुनः गुरु के पास चले आए। पास केपश्चात पत्ता के सण दोडा में मिलती है। जो बा की समाप्ति और नए मर्ग के प्रारंभ की सूचना देते है। साटों भासों में कवि ने क्या के मार चित्र दिए है। जो उसके विदाच शिल्प-चातुर्व की वमता के परिचायक है। बहकाव्य और गारिक काव्यों की परंपरा के अनुसार कवि ने मंगलावरण प्रारम्भ में रखा है: पगामिय पास जिद पर अनु सरसह समरेवी धूलि मइद पुषिवर भाषिए कागु बन्धि गुणकवि इससे कवि की फागुबन्ध शैली पर भी प्रकार पड़ता है। फागु बन्धु शैली के अनुसार इसमें कवि का एकागी दृष्टिकोष नहीं रहा है। इसमें भी एक विरह विदग्धा वारांगना कोश को 11 वर्ष पुरा देकर प्रियतम स्थलिमा चले गए और पुनः मिल रो, इस धारणा का अपूर्व मुख किया जा पर वास्तवमाथि कोश का पुनर्मिलन नहीं हो पाया मान की बी किरणों को उत्तानबा नहीं थी, इ हो मान और काम का प्रकारानामिका उसी विलासी पार ई. सगे स्वाद हो गया है कि विप्रलय भार वामावरमा सिनिवार दो सफल नहीं हो पाया, पर नायक की गायिका निभाव देववाओं का पुष्प वृष्टि करना और सामानों वारानी गाने ने और रंग। इनकर आनन्द मनाने की मियानोनिती की रचना की गई है।अनुप्रास तथा फागुबन्ध ली इसमें नहीं दिशा की। ग्रामि उदाहरण ..... - ४.धावीमकायहभीडा. भोगीलाकोडेखरा.प.३२॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy