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________________ वैलासिक वातायनों की रंगी नियों के ऐश्वर्य के अतिरिक्त उनमें कुछ भी नहीं सुहाता था। राग में कर्तव्य का ध्यान ही उन्हें भूल गया / कोश वैश्या के यहा स्थूलिभा ने इसी तरह अपने जीवन का एक अमूल्य युग पूरा कर दिया। इधर शक्टार ने यह समझ कर कि उसकी मृत्य तो निश्चित है, उसके बाद उसका सारा परिवार मी मारा जाएगा, अपने छोटे लड़के श्रीयक से जो स्थूलिभद्र का अनुज था, कहा कि मेरी मृत्यु के कारण परिवार की रक्षा हो सकती है। ज्यों ही में सिर को नीचा कर ई तुम कह देना कि ऐसा राजद्रोही बिरोधी तथा अस्वामी भक्त पिता मुझे नहीं चाहिए। हुआ भी वही। इसके पश्चात मन्त्री-पद के लिए प्रश्न आया। श्रीयक ने स्थूलिभद्र से कहा। स्थूलिभद्र को जब ज्ञात हुआ कि तुच्छ राग्यपद के लिए पिता का 'वध हो गया है और माई श्रीयक इसके मूल में था, तो उन्होंने राज-सभा में जाकार * मया आलोचितम्भ कहने के साथ ही अपने के उखाड़ डाले। स्थूलिप को वैराग्य हो गया। संसार से एक बम विरक्त होकर बे चल पड़े। आचार्य संभूति विजय को उन्होंने दीक्षा गुरु बनाया उन्हीं के पास तप एवं अध्ययन प्रारम्भ किया। विधिवत् दीना पाने से, सम्यक् आचरण, साधना एवं गुरु-प्रसाब से विसाली स्थूलिभद्र जिनकी काति कंचण "जिम भलकति थी, अब कर्मळ, तपस्वी, योगी एवं जिवेन्द्रिय हो गए। प्रथम चतुर्मास का समय आया ।सबने गुरु जी से अपने चतुर्मास विद्या के स्थान पूछे। स्थलिमह मे गुली के उसी कोशा का प्रासाद बिहार के लिए मांगा। विविजय को उनकी जिजेन्द्रियता पर बस विश्वास हो गया था, उन्होंने माझा दे दी और से प्रसन्नता मे कोश के प्रासाद को मा बाहुनासिक विकार बनाने को बल थे। बालोय कृति की कथावस्तु यही से प्रारम्भ होती है / स्था का सूत्र स्पष्ट करने के लिए उक्त पूर्व क्यासार वे किया गया है। लिये बगल में कोग के यहा प्रवेश किया,क्यों कि चतुर्मास वाकाल को ही कहा जाता है। कोश ने अपने श्रृंगार को चरम पर पहुंचाया - देखिए पनि कामुप्राचीन गुर्जर धमाला //
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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