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कवि वर्णन नहीं करता। इस काव्य वारा चरित-नायक के व्यक्तिगत जीवन की कोई सूचना हमें नहीं मिलती। तत्कालीन साहित्य के मय ग्रन्थों के आधार पर ही स्थलिभद्र का चरित्र जाना सकता है। वस्तुतः यह भी सम्भव है कि कवि ने इस प्रभावोत्पावक चरित को उसकी अमेधक्षा के लिए ही जना हो। विलासी और पेन्द्रिय लिप्सा में डूबे हुए इस चरित्र को भी सूरि ने एक अपूर्व आध्यात्मिकता में ढाला है, जिसमें एक उज्जवल संदेश है जो समस्त मानवता का नेतृत्व करने में सक्षम है। यह भी संभावना की जासकती है कि कवि ने संविस्तता को ही अभिव्यक्ति का माध्यम जुना हो। स्थूलिभद्र के जीवन के प्रथम तीन दशक विलास प्रधान रहे थे। नगर की वारांगना कोश के साथ ही स्थलिभद्र लिप्त रहते थे। अत: परम्परा के कारण कवि ने उसका उल्लेख इसमें करना ठीक नहीं सममा हो। या कवि ने उनकी जीवन की समस्त घटनाओं में से इसमहान विचिन, कठिन एवं असाध्य घटना को ही अपने काव्य की रचना के लिए चुका हो, जो उनके जीवन की असाधारण एक महान एवं आदर्श घटना है।
वथा भाग
___जहा तक प्रस्तुत काव्य के चरित-नायक का प्रश्न है, वेचन इतिहास के एक महत्वपूर्ण पुत्र है। उनका यक्ष-वर्षन अनेक काव्यों में भा है। वे स्वयं एक बहुत ही प्रतिमाशाली साधक जैनाचार्य थे। जैन समाज में इन अपूर्व बीयरागी की बड्डी प्रतिष्ठा है बथा जैन उनके मा को वीर्षकों का पर्व बभर मानी है। कवि ने इसी चरित-नायक को अपना विश्व बना कर गब्ध की रेखाओं में बाधा है। २७ कड़ियों के इस छोटे से काम के कषि मे भाविकालीन काव्य-प्रवाह में एक मवा अध्याय जोड़ा है तथा वर्षन की प्रसादमबी ली उसे अभूतपूर्व सफलता मिली है।
पाटन ग रामा क्व इबिहार में प्रसिद्ध हुआ है और उसका मन्त्री अक्टार भी प्रमिल है। ब्मित इसी शक्टार के ज्येष्ठ पुत्र थे।
पुलिस की रियो अत्यन्त उबलता पूर्ण एवं बैलासिक हो गई। प्रारंभ है की समका सम्पर्क पात्रि की एक बारीमना कोशा से हो मबाबुस्लिा विकास में डूब गए। दिन रात उसी के यहा पो हो । योग ही उनका कार्य था।