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________________ अपप्रष्ट होना-भय नहीं, पूषन है।' अपज को पुरानी हिन्दी मान देने से अन्यप्रान्तीय भाषाओं के अधिकारों का हनन मेता है। राहुल जी का यह धन एव दृष्टव्य है कि अब म पुराने कवियों की भाषा को हिन्दी कहते है तो इस पर मराठी, हिया, बंगला, मासमी, गोरखा, गुजराती, पंजाबी, गुजराती भाप पापियों को आपत्ति हो सकती है, क्योंकि वे भी हिन्दीवह अपना अधिकार रख सकती है। वस्तुतः यह सिद्ध सामन्त युगीन कवियों की रचनाएं उपर्यंत भारी भाषाओं की सम्मिलित मिपि ।' वास्तव में राहुलजी के इस कथन में जो सबसे बड़ी असंगति लगयी है वह यह कि वे पक ओर तो अपज को भी अन्य भाषाओं की सम्मिलित सम्पत्ति बतलाने 1, और दूसरी ओर उसी अपांच पर शिदी का एलान एअधिपत्य स्वीकार कर उसे पुरानी दिी कर डाली है। -राहुल बी का हिन्दी प्रेम सराहनीय है रिमी हमें बही दूसरी भाषाओं के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए जिदी के साहित्य मार को अमुचित स में बनाने का कोष बरन ही करना पड़ेगा या अपश को अपशकहना ही ज्यादा माय मर होगा। ()- आदिकाल ग. वारी प्रसाद शिववेदी में इस का मामल बाविकास किया है। वस्तुतः आदिल नामक स्थिति मत कुम भाती है। क्योंकि इसमें प्रारंग से मिलने वाली लगभग सभी सामग्री का मरमा समाहार या समावेश हो सकता है। प्राचार्य दिवेदीदी चाहियो आदिकाल पाने वाली प्राण सामग्री का विश्लेषण कर या माध्य सामग्री की बोर कस करके भादिकात गरा विशाल बिया है। बालोकों ने दियवेवी की मादिका मतियां देखी है। बालोकों का कहना कि माविका पुकारने 0 n eat पूरी बी। ARE UPA को - दिी का पारा राक गहरयासन हिन्दी कामगार परम्परामारामारी :
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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