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________________ उक्त नामावली में गदि ग्रन्थों का परीक्षण किया जाय तो केवल वीसलदेव रामो को होड़कर और कोई भी रचना वारण काल कीसीमा में नहीं आ पाती। और इसे वे वास्तविक रूप में स्वीकार करते हैं। इार डा. मोतीलाल मेनारिया ने पीसलदेव रासो का रचनाकाल १५४५-६. के आसपास सिद्ध कर दिया है।' ऐसी स्थिति में ऐसा लगने लगता है कि बाल काल का अस्तित्व ही विगूध है। स्वयं बमी जी के इतिहास के नवीनतम संस्कल में इस बार का उल्लेख की नहीं है कि इस काल में कोई प्रमाषिक वारण कृति लिखी गई हो। इसके अतिरिक्त उन्होंने नगरवकाल में १५वीं साब्दी की कलियों तक को स्थान दिया है जबकि शुक्ल जी के अनुसार बादि काल की सीमाएं ० १ तक ही समान हो जाती है अतः वी पी ने इसनी गामे की वादियों में मिलने वाली जिन रचनाओं का उता अपने इतिहास अन्ध में किया है तो धारण काव्य के वर्गत आने वाली कृतियों की परम्परा में नहीं लिया जा सकता है। उनका बादिकाल कीसी माबों में समापन करना कभी संभव नहीं है। (1) सिद्ध-बान- गतः महा पंडित राहुल कृत्यायन में बादिकाल का नामकरण विध-सामान्स-युग किया है। उन्होंने अपशको पुरानी हिन्दी मानो प अपशगग बमी काव्य नों को मिति नरिया और इस काम की टीमा मह .. १.... मामी है। अगर को पुरानी दिी मानो हुए राहुली जिसने 1 कि..भाने पुन रक्या होगा कि इस भाषा मे अपांच गयद इसे भाप माने लगे होने कि कब हो या हिन्दी र म मात्र शेगी। लेकिन TTA पर न जाए, इका सरा नाम ही मामा भी है। इसीलिए कहते है कि इसमें संस्कृत जयोट मही, मास्ट, होट 1, safar संस्कृत पंडितों को पाटि ब रेमोमानि मदों का रूप बदलने बकते मया कप तेला - १. राजस्थानी भाषा और साहित्य: डा. मोतीलाल मेनारिया, १५॥
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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