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आल्लाद, नारियों के नृत्य गान, तथा फागु के मन्तव्य को स्पष्ट करता है:
वध माउ करावए सिमिगहि जिपचंद मूरि गुजरात पाटण मला सयलई मयर माहि
सिरि जिणचंद सरि फागिहि गायहिजे अति मावि
ते वाउल पुसला विलसहि विलसहि सिबमुह साधि ' रचना छोटी होते हुए भी सीव दर है। विकृत अंश सम्भवतः कवि के काव्य का बहुत ही महत्वपूर्ण अंश रहा होगा। फागु की प्रत्येक पंक्ति में अरे शब्द की आवृति है, जो उसकी गेयता की सूका है। यद्यपि रचना के प्राप्ताव में काव्यात्मक प्रतिभा के स्थल बहुत कम मिलते है, परन्तु जितना भी मिलता है उसी से कवि की वैली भाषा तथा उसके उस्लास गान का अनुमान हो सकता है। शब्दों में अनुप्रसात्मकता है। प्रकृति वर्णन पी कवि ने अनुरमात्मक किया है। विसिय विडि बिंदु में कितना निवार
अरे रि पुरि आँबुला मउरिया कोवल हरचिय दो ___ अरे अचेतन वे पासिया सिन्हुणी जुगलिय वास अंतिम पछि में कवि की उपदेशात्मकता स्पष्ट होती है। प्रकृति बर्मन में इसी से पहले भी उपदेशात्मक स्व इस काम में मिल पाता है। वर्ष में कवि का कौशल दोही पंक्तियों में देखने को मिल बाबा है:
अरे सिरि माह काम बावरा कोटिहि अवाक हार
अरे माही हा पाणिहि वर क्यो का रखों कवि ने गार के दीयों के साथ साथीर रस की भी प्वनि का मान कराया है। काम का गबर गेर माना,रमतूर्य का बना और गर्वोन्मत शीलवान पुनि का सम्मा मादि सब कार्य उत्साह की अभिव्यंजना करते हैं:
- बही ग्रन्थ, पद २५॥