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३७२ रिप इरिहि वजतिहिं उट्टि बील मरित
अरे दैठिहिं देठिहि दीठ नाल रितु पतिमाह घर निदह पाय लिहि पुडविहि पंडिय लोउ
जीता जीता इयमणइ पवइ सगिगहि सुरपति ईछ उक्त उद्धधरण की इस जय जयकार ध्वनि- कि पाताल के धरनीन्द्र को पृथ्वी के पंडित लोगों को तथा स्वर्ग के इन्द्र को मुनिवर ने जीत लिया- से उत्साह की योजना स्पष्ट है।
___ इस छोटी सी रबमा में अपप्रेस के गिने चुके बहवों के साथ कुछ मालय के प्रान्तीय प्रबुद तथा प्राचीन राजस्थानी या प्रचीन गुजराती की भरमार है। कुछ शब्द- तदभव है एवं कुछ तत्सम यथा:अपनव-मउडू, मेवर, बजविहि, उदिव्य , सया पुषि, समिति, नवरर आदि। मालवी व प्राचीन गुजराती- वाउ लि, पुसला, आंबला, म रिया, उरि, श, गोरड, रलिय, वालर, पुरि पुरि, टुडकए, तणी, प्रकार, नाल, दी०ए आदि।
___ इस प्रकार कृति बहुत छोटी होने पर भी काव्य रित्व पर प्रकाश डालबी । यो रकमा मामा और काम मनोमय परामय की बसका वित्रण करने वाली बबावधि शाम प्रति से प्राचीन और भावपूर्ण है।