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आगे का पाठ संडित हो गया है कवि ने श्रृंगारिक उपादानों और उदीपन एवं अलंकरणों का बहुत ही मदर वर्णन किया है। सुन्दर श्रृंगार संभवतः इन सोई हुई पंक्तियों में अवश्य रहा होगा क्योंकि ऐसा इन इंडित पंक्तियों से स्पष्ट होता है। इसी संभावना तथा उपलब्ध पाठ के आधार पर ही इस कृति को लेखक ने श्रृंगारिक आख्यान काव्यों में स्थान दिया है। मंडित पंक्तियां देखिए:
अरे सिरिया मोहा लहलहदि क्सतूरिय पहिवट अरे .......-------
.............--- ट परिया देवगण भाउ । रिण दूरिहिं वजंविहि उहि शील नरिई
वेरिवि उत्क्ट विडियर पाय विदेशि विड' श्रृंगार का राजा काम अपने उत्तम प्रवन पर भी मुनि को नहीं जीत सकाारपर्य बजने लगा। बील के अधिष्ठाता पनि उठे और उन्होंने कामदेव को पछाड़ दिया और कायर कामदेव का लज्जित और इंठित होकर भागना था इन्द्र का जगजयकार करना उल्लेखनीय है:
अरे ट्रेणिी टेलिशी दीप, मास रतिवति राज नारीय जक मेडिवि जोवर छाडिय " पर विवा पायाशी विवि कोर
बीवी इस मा पनि पुरषति इंड। और नायक की काम विजय पर पाटय के उलवित भक्त उत्सव करते है। मार युद्ध की घटमा संस्कृत काव्यापलटी मा रही है अतः पटमा गार प्रधान होने की स्थिति उत निष्ट हो पाती है। मैं कवि श्रावकों के उल्लास और
१.प्राचीनकासा
बाडेसरा पु. २३२ पब १२-१३