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१४वीं शताब्दी फागु
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१४वीं शताब्दी से ही फार्गों की रचनाएं मिलनी प्रारम्भ हो जाती है। फाग परम्परा पर पूर्व पृष्ठों पर विचार करने के पश्चात अब हम १४वीं और १५वीं शताब्दी में उपलब्ध कुछ उत्कृष्ट साहित्यिक तथा काव्यात्मक फागु रचनाओं का विश्लेषण करेगें। इन उपलब्ध कूतियों में भी रास की तरह विविध विषयक फागु रचनाएं मिल जाती है। फागु कीप्रवृत्ति कालान्त में इतनी बढ़ी कि १४वीं के उत्तराध और १५वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में तो रास छंद की मीति का एक द · विशेष ही बन गया है इसी समय की अनेक रचनाएं श्रृंगारिक प्रवृत्तियों की मिलती है । यों अंशिक रूप में अन्य रसों और प्रवृत्तियों से सम्बन्धित कृतियां भी इन्हीं फागों में मिल जाती है। फायु काव्यों के वर्य विषयों में रास की ही मीति विविधता मिलती है। कुछ वरित प्रधान फाग हैं तो कुछ कथा प्रधान किसी में घटनाओं का बाहुल्य है तो किसी मैं उत्कृष्ट श्रृंगार है। यह श्रृंगार भी ऐसा जो संयम और म की सीमाओं से बंधा है। इनके अतिरिक्त, काम पराभव वर्णन, राप वर्णन, क्रीड़ा, रमण, नृत्य आदि के पुरुष पक्ष से सम्बन्धित विषयों पर भी फागु संज्ञक रचनाएं मिली है। विविधता की दृष्टि से इन रचनाओं का बड़ा महत्व है।
१४वीं और १५वीं शताब्दी में जो प्रमुख काम मिलते है उनमें से जिनका सम्बन्ध नेमिनाथ स्थूमि और नंबू स्वामी से है वे रचनाएं ईमार प्रधान है। कुछ काम पराभव की है और कुछ अन्य विषयों से सम्बन्धित है म का वंशक रचनाएं श्रृंगार बर्मन के लिए नहीं है पर प्रस्तुत बधिकीय कार्गो का सम्बन्ध ऐसे नायकों दे रहा है जिनका एक चरण तैयार में रहा और दूसरा वम में काम के उड़दीपन, संयोग, वियोग के चित्र तथा वर्ष वर्णन के उल्हासित गान इन फागों में उपलब्ध होते है। इन कामों में गहनता है काव्यात्मकता है मधुमास का उल्लास है । वास्तव में मे काव्य गुहारिङ्ग के पैगीत क है। इस काव्यों में सेकई कार्यों की प्रवृत्ति श्रृंगारिक है। समधि जैन कवियों और साधक इनियों द्वारा मार व उनकी परम्परा से प्रतिकूल पड़ता है परन्तु क्योंकि उनके पूर्व पुरुषों गरि
डोना
नायकों
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