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क्रीड़ा नुत्य गीत. वसंत आदि का ही विधान मिलता है। कुछ उदाहरण एतदर्थ
देखे जा सकते है.
राजल देविस सिविध गयउ सो देव शुभिजइ
मनहारिहिं राय सिहर मुरिकि फागु रमीजइ ' मैं रमीज ग्इद विशेष उल्लेखनीय है। यह कृति ५वींतादी की है।
भविय जिणे सर भवण रंगि रितुराउ रमेवउ
मनहरिसी जयसिंह पूरि कि फागु कहेउ-२ में रंगि रितुराउ, रमेवर से फागु का अभिप्रेत सिद्ध होता है। यह कृति भी १५वीं बतादी की है।
फागु वसं ति जि बेलइ बेलइ मुगुम निधान
विजयवंत से छाइ राप तिलक समान-" इस उधरण से स्पष्ट होता है कि उन्लासपूर्ण मधुरितु का महोत्सब जिसमें सेना गामा और रंग में डूब जाना ही फागु की प्रवृत्ति रही है।
समुधक ने तो फागु को मुहावना तथा खेलने के लिए ही कहा है। जो समुधर ममा सोहावट
का बेला पविवार १५वी वादी प्रसिधाम जबर cिe to) मेक्निाव का मी रास पाये जाने के लिए ही किया है, मा स्पष्ट होता है।
मिव या शिरि दिमि व्यापर धाप सहि संध सूर उसे शामिन पापिय गाभिक रंग
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१.प्रा.का .. . रा १. सबसिंह यूरिया-पिणा 1- अन् स्वामी गम-मास ४. बही . ५६॥
की-प्रा०का... ५५॥ मा.का.स.पू. ५६