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कवि विनोदिहि सिरिजय सिरिजब सेहर टूरि
जै खेल से अपद संपद पामह पूरि
फागु में रमणियों और कामिनियों के नृत्य करने और खेलने का उल्लेख भी मिलता है । कवि दूम के नेमिनाथ फागु का उदाहरण एतदर्थ उल्लेखनीय है
पीण पयोवर अथकर गुजर चरतीय नारि
फागु लइ ते करि करि नेमि जिनेसर बारि
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फागु तेलहि मनरंगहि हंसगमणि मृगनयणि
गुणचन्द सूरि ने तो एक वसंत फागु ही लिख दिया है।
१५वीं शताब्दी के देवरत्न सूरि फागु में कामदेव, रति और उसके मित्र ade का वर्णन अत्यन्त सुन्दर मिलता है। फागु की इससे उक्त प्रवृत्ति और मी स्पष्ट हो जाती है।
चंदन नारंग क्वलीयलवलीय करइ आनंद raat xes बहु मंगिइ रंगिइ मधुकर वृंद aft वनि गायन गायई बायइ मलय समीर safe मावई रमणीय रमणीय नव नव चीर
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रविना वह बारीक रोख बाबीर रे
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को का काव्य के अभिप्रेत के रूप में स्पष्ट करता है।
१- मुरबाड, मानक्वाड मारिएन्ट सीरीज, १८वा पुष्ध पू०७४
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