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(ग)
वसंत विलास की भूमिका में श्री का व्यास ने भी विषय वर्णन के आधार पर इसे मधु रितु के उल्लसित वातावरण का गान ही माना है।' डा० साडेसरा ने भी हेमचन्द्र की काम सम्बन्धी परिभाषा पर प्रकाश डाला है। देशीनाम माला में हेमचन्द्र ने इसे वसंतोत्सव कहा है। अतः यह स्पष्ट है कि इसका विषय श्रृंगारिक होना चाहिए। इसमें मधुमास का वर्णन हो। कोई विशेष अवसर या महोत्सव का वर्णन हो। उल्लासपूर्ण अभिव्यक्ति हो। बसंत क्रीडा वर्णन न होने से श्रृंगार के संयोग और वियोग किसी भी पक्ष
(ख)
(8.)
का वर्णन हो।
(च) वर्षम सरस और भाहलादक हो।
उक्त प्रवृत्तियों के उदाहरण अनेक वरवर्वी फागु में मिलते है सिरि भूति भइव कार में भी कवि ने उसकी विषयगत प्रवृत्ति को स्पष्ट किया है
खरतर गछि जिण पदम भूरि क्यि फामुरमेवउ बेला नाबई चैत्र मासि रगिहि गावे ।
अस: यह नाचने और चलने की प्रवृत्ति कागु के उक्त उधरप से स्पष्ट होती है। कवि में विशेषकर इसका मन बन पात सि ही यिा। पीर का विधान-मावेकर- मद से अभिप्रेत गेला । म कामपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए है। रोका और माह में कीड़ा और मृत्व स्पष्ट हो जाते है। वीं शताब्दी के भयेक परवी गाव काव्यों की प्रेरित भी इसी प्रकार विश्व प्रधान रही है जिसमें
काश पाछो-देवी नाम माला हेमचन्द्र(६-01) क्या प्रा.का.डा गाडेरा .. .प्राचीन और काम्बा श्री डी.डी. पद