SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सीरेखा में आने वाली एक प्रमुख कृति है जो अब तक अधात (जिनचंद मूरि फाग के नहीं मिलने से पूर्व तक) आदि कार की सर्व प्रथम फाशु रचना की जा सकती थी। संस्कृत काव्यों की परम्परा में फाय का स्थान स्पष्ट करते हुए श्री अवयचंद्र जमी ने लिखा है कि रितु काव्यों में भी फामु का प्रारम्भिक रूप देखा जा सकता है। फागु की स्पष्ट झाकी में सबसे पहले हमें प्रमीत रत्नावली नाटिका के प्रथम अंक में मिलती है। कवि मे मदमोझाम मैं मदन पूषा का समारोह पूर्ण समारम्भ दिखाया है। मदनिका तो उन्माद के कारण समयोचित मृत्य भी भूल गई। विदूषक ने उसे "ममण वन विसंबुलं बसता मिषय मैपडी(कामवत्र वैडिका बसताभिनय नाचती हुई) देखकर ठीक ही वैसा राजा से निवेदन किया था। कंदर्य पूजा के अवसर पर चेटिया मृत्य करती हुई समवेत स्वर से डिवपदी मन्ड माती थी। अत: यह स्पष्ट हो जाता है कि फागु की ये प्रवृत्तियां स्कृत के रत्नावली नाटक में भी मिलती है और मदनोत्सव तथा वर्ष पूजा इसमें विशेष म्स से होती है क्यों कि वर्ष का विशव मित्र वसन्त ही माना गया है। उत्सव का विषय होमे से या कामना की जा सकती है कि काय में मील, बाश्म, मृत्य बाम और समावि मनन गोगये। और बबनी कि नकार ... समातियों के माधार पर विमानों का की कमेक (क) का बागरा में काम की मरमति बस्य फसा (बसस प्राकृत-पाय c) गुजराल बिवाम की मात्रास्त्री ने मारिक विषयों के आधार पर ... ... . मन काल या मागरी वारिली पत्रिका, ककनीमा का-विधिलिड्दगंा-पालोपक १.प्रा.का.डा. साडेसरा पु. - बबन्तोत्सव माई बाप। -भाषा कवियोश्री काडीमाती
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy