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________________ ३०८ राजा महीपाल वेगवंतर छइ रामी विसाखी पुत्रि नाम विवेक विदूषी आहार लेवा मुनि इक माया वह्नयामा बाहार लेवा जाम बस्ति निरमल गुण धामा गरिव बइठी ताडु उवरि थुकि मद बंधी राजा छेह लहूही करी तुम सठ दीनी निदा गरुडा आयु की मुनिकन्ह लगाइ कुंवरि ते तपु लियउ अनसरण आहारी और इस प्रकार भिवार्थ आये युगल चारण मुनि उसे १६ कारणों से सम्पन्न व्रत करने का विधान समझाते है। कथा वस्तु धार्मिक तत्वहोते हुए भी इस छोटी सी कृति में क्या-त्व होने से पाठक या श्रोता की रूचि बनी रहती है राव रचना का उद्देश्य उपदेश प्रधान है कवि जनसाधारण में किस प्रकार पूर्व मन में Pregcreat से इस भव में फल प्राप्ति का सिखावन देकर जन साधारण के सामने संयम व उपासना के १६ कारणों को कथा सूत्र में बांधता है। इन कुली तेरी जनम हुआ पूश्व विदेह, सोलह कारण वरत करी बीर्थकर छोइ वन वाली पावनमी कहि वापि विवार्थ, मादा मावि चैत्र मास कहिए विवारा करि मंस एक टोक्छु पालीन्जर, परिहरि परि व्यापार व मध करीजंड ffer घरि पालियर कानवि कीन्जर विबन गाना चरित्र वर्षो वहि विन करीन्जर पालिए सब पटारे, ज्ञान निम्बर बार पढन बहु रंगि विवा भव भव दो पर महि बर रामु घरी. पारिवान व वारि वेद कति पातीबर
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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