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:: सौलहकारण राम ::
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१५वीं शताब्दी की रास रचनाओं में एक छोटा सा रास सोलह कारणरास है जिसके रचयिता सकल कीर्ति है। यह रचना दिगम्बर भंडार जयपुर की है। कृति आमेर के भंडार जयपुर (श्री दिगम्बर अतिशयक्षेत्र कमेटी जयपुर के भंडार) में सुरक्षित है। प्रस्तुत रचना अप्रकाशित है तथा छुटका ० २९२/५४ के पत्र
२४२-२४३ पर लिखी है। प्रति का लेखन काल सम्भवतः तावृदी के आस पास है। कीर्ति अपने समय के दिगम्बर कवियों में प्रमुख कवि हुए हैं जिन्होंने होलिका रास, आदि अनेक कृतियां लिखी है। प्रसिद्ध दिगम्बर कवि ब्रहन जिनदास के से समकालीन थे।
मस्तुत रास एक छोटा सा खंड काव्य है जिसमें कवि ने प्रारम्भ में मंगलाचरम के पश्चात् साधना के लिए तप और तपके लिए १६ कारणों का विधान एक श्रेष्ठि कन्या प्रियंवता से किया है। प्रियंवंता का परिचय कवि ने एक दुर्भाग्यशाली परधर्मी, और व डोगों युक्त महा कुरुपिणी के रूप दिया है। जो पूर्वभव में कि अपराध के कारण इस गति को प्राप्त हुई थी। जंबू दीवह भरत सेत मागथा छह देसा राजागृह छह नगर हेम प्रभाराज धनेटा विजया सुंदरि तमाम पुरोहित महासरमा बिडीया नारि म घरमा
Sore मैरवि रोग
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कवि ने पूर्वमय में कर्म सिद्धान्त का प्रचार कथा के द्वारा किया है तथा सोलह कारों है जो पाचन की सकता और यों को निर्वाण की प्राप्ति कराये है इस राख को प्रेम कसा बाहिर यही संदेश दिया है। क्या की नायिका एक बार पूर्वभव में बाकार हम करने के लिए आये मुनियों पर शुक देती है और उसी बाप से वह इस जन्म में भयंकर रोगों से ग्रसित होकर कुरुविनी का जाती है। इस प्रकार दो बार मुनि उसे पूर्व भय में किए पाप और इस भय में इसका उधार करने के १६ कारणों का उत्ते करते हैं: