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________________ ३३६ अडवा निवचई पुष्ण जन्म जिणवरु इनि चित रंभा परमा गरि गंग रतिहा विधि वंचिय नहि बुध, नहि गुरु, कवि न कोवि, जल आगे रहिय पंच सर्व गुन पात्र शत्रि टिड परिवरित (१-६) कवि मे समवसरण की रचना में पर्याप्त उत्साह दिखाया है। इन्द्रभूति की स्वा और पांच सौ वियों सहित समवसरण में जाकर महावीर से साक्षात्कार करना और महावीर का वेद उक्तियों से उसे समभाना, गौतम का वीवित होना व्या प्रथम गणधर बनना तथा गौतम द्वारा सूर्य किरण पर चढ़कर सीर्थकरों के मंदिर में जाना और पुनः अनेक तपस्वियों को केवली बनाना आदि अनेक स्थल मेयता और काव्यमयता उत्कृष्ट स्थल है: जोजन भूमि समोर पेव प्रथमारंमि effees मंत्र जति सरंभि मनियम तोरण व चज, उसी से नवपाट वयर विवज्जित तुगण प्रतिहारिज वाढ सुरनर किम्मर मरवर, इंद्र इंद्राणिराय free मुक्ति प सेवंहा अनुवा ase forम बिन बीर जिन बिसाहू भवर वा मह इंद्रिया a बाटावर चिम पुरो गान श्रीवादि भानु नियति करे, नाग बी मेकि मानबारे पुन प्रति बोधई 本無數 #11 #21 मद इदि भिमानि वाया मनि बडवई रबि नि, भावनि दिनकर किरम
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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