________________
३३१
(२) ऋमि अपि जुम्वणि तिथि पसरीजा बीजतणी मसिरह विम (७) कीजइ पातक प्रश्यवति का लाज किरीसं (४) वाचई पंचइ चंद जिम पंडव गुण गंभीर (५) मंच चडया सोहह जिमचंद (6) कुंडल सरिक लायो बालो, रंकु लाइ जिम रथम मालो (0) कि न कीजा शनि अवसरि लापड़ परमवह (८) देखे न गिबई देव गिणह प्रश्नइ पात्र
संताप मुयमह करई पश्य हीन जिमराय रोलई
दारिद्र हुक्म केह परई तृष्णा किजि गिरि सिडक ढोला (९) 'मिडइ सहड रहबढई बीम घड नह जिम नम्बई
इसई नई अससई वीर पेमल जिम मन्नड प्रस्तुत रास की भाषा सरल हिन्दी है। जिसमें प्राचीन राजस्थानी, यूनी, गुजराती आदि गइयों की बहुतायत मिलती है।अपने माबों को सरलतासे ज्यात कर देना और अपनी अभिव्यक्ति में पूर्ण ईमानदारी रखना तथा उसे क्लिष्टता सेबचाकर जन साधारण के लिए गुलम बना देना ही पब्ने कवि एवं उसकी कविता की पहिराम होती है। मापि इस नाबालक भागरिमा लावापिया नहीं, पर वो भी बाबा का काम है। पिपरा और नहोस
मामय बालिया। मामी के रामरतेवर मावली के बाद मारपूर्ण भाषा में बन पायों को पदावली निगल वैमाने पर
बोंबाबा ग्वारप मिल जाते है।
बामा मापर भारी पार पाडव अपर परीयो (Vris-IMIM, कोमल वार्षि हरिपी बोला कि पति Com mar, अपि अधि वी गरपियामि,
प्रिय पारपीट
बाबाईया