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को वान्व किया। गंगा के न आने पर शान्तनु क धीवर कया पर मुग्ध हो जाता है और राजा को प्रतित करा चीवर अपनी कन्या सत्यवती का विवाह उनेक साथ कर देता है। वर्णन की सरलता दुष्टव्य है:
सालि सामी अम्ड पर सूती, तुम परि ग गंगा मूती
मई बेटी जर तुम्ह देवी,
उर्मि दूढ परेवी
कुरुवंसह केर डणु, राज कोसि गंगा मंदणु
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धी महारी या जिवाल से क्षवि पावड इस काल सत्यवती के दो लड़कों में से पहला कर्मो के दोष से बचपन में ही मर गया व दूसरा कुमार विचित्र वीर्य हुआ जिसके काशीराज की अंबा, अंबाला और erfer तीन कन्याओं से विवाह किया। जिसके क्रमशः विदुर, मान्डव इतराष्ट्र हुए। राष्ट्र ने गाधारी से और बाड मे बाही बेविवाद किया। इन्ही कर्म कुमारी अवस्था में उत्पन्न हुआ इसकी अंतर्कथा जैन महापुराण में
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एक विद्याचर की बडी से सम्बधित है। वही कवि ने इतना ही वर्णन किया तभी पाप करते है। कर्म मंजूसा में डाल गंगा में महा
है कि किस प्रकार
दिया गया:
परिनीय वापी पै कुमरि आयीय विभ
सरि ति पति हुई इत्युबा रमणी
कीव पाति कई ब्राय कि रो
इधर गंधारी के १०० कौरव, पाईरहने सर्विस और राजा में
| अर्जुन
उतरे
है कवि में महा में राज्यों के प्रदर्शन का आयोजन
पर किया। धिन्किर को भाव में, भीम दुर्योधन में गवा- युद्ध हुआ,
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उत्तरा ० १५० १०४ श्राचार्य, पारखीय ज्ञानपीठ काशी।