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रस के स्थल स्थान मि पर मिल जाते हैं। कृति की समाप्ति निर्वेद से की गई है। कृति में चौपाई और रामद प्रमुखता से मिलता है भाषा की सरलता, उसकी तत्समता तथा प्रवाहात्मकता के लिए एक उद्धरण इष्टव्य है
हरिकरि विस बेयाल, कालि नवकारि हमंती जउ रिसंती ममणरेह, उ सरबरी पत्ती बफ कति सरजति मागिर, दिवस निमि पुत्तु जबेई केली हरि मिल्हे बि, कुमरु सिरि नहाए करेई जल करि नतिणी परतु, जेन गयषि यति उलाला धरनि बंडती बीड, बेम विजाहरु पल्ला हुंदरि जमिन बार राव भविष विज्जाहरु नंदीसर बरि जम्म बार मषि बल अपीसक
जिप हा पुत्र करेवि जाम भूमि पाय नमेवि देसण निषिय सयर राय मबया हाई
है
कुमरा सबला बिना वरि पड़ियो करती
केवल ना घरेवि मयमा शिक्षित पाणी . (मकि 11-4) वस्तुतः १४वीं बाब्दी भाषा में समा स्वम इस विमा सो
ब की कहीदने को मिलो।ति की महत्वपूर्ण है। वीं मगही प्रकार अनेक राम मिकी है। उवारमा महावीर राम (10) मनातरार, बाणा रास (m) सम्परमीयराम, जिनपन इरिषदहाकिम भावविषिरा मावि पर रचनाएं काव्य की दृष्टि मापारीही । ती सादी
बादी में राम को दिया गया। गेगी। वारली नदी गराम विकासमन्य है।