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मयण सरासषु करइ बज विरहिणी भा पह
अवतरिया सिरि बसंत राय मणिरा इवयंपा युगबाहु और मयबरेहा की केलि क्रीड़ा और रास आनन्द पपिरथ से नहीं देखा गया। पीठी मीठी वाणी बोलकर कृत्रिम सहानुभूति दिखाता हुआ वह वही आया और भयरे मा को प्राप्त करने के लालब से पैर छूते हुए भाई के सिर पर तलवार मार दी। अतस्सत्वा मदनरेशा दीन होकर भटकने लगी पर अपने चरित्र सतीत्व की पूर्ण रवा करने में उसने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। स्वामी की मृत्यु पर सदन करती हुई मयबरेहा की स्थिति बड़ी करुणात्मक हो गई और सती को सताने वाले दुति मपिरथ को भी साप ने काट लिया:.
जमजीडा सम खा लेउ बा को वि जलता माया चिठ सयल लोउ के लीहरि पावर कुमए न भूवक पई किया वनवासि वसंतई महिमंडति बहरि गमिति निमि दिवा भर्मता इव जंपता नर बराह मो पवमा पाय हा महोबर, सिरि मिना पाव
सावि धाम होर हामि दिन मानी कि पार पला मजनम जमिन गा पुरावा होरप मीर बयर करे मा बिमा तोड मरवा भूम करे मनको मोमा रेमि fier मोमि जोगति समिरा पढेर, पाव महापरि यो परिस लिपि र मन रिजिना हि पनि रलिय विपि कार सवालिया दरमणि बोषितीय (बी-1
रमा
पूरी हो जाती है। पापा बरस
बागरिक