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________________ जहां तक शुक्ल जी द्वारा उल्लिखित इन रचनाओं की प्रमाणिकता और प्रवृत्ति का प्रश्न है, विद्वानों ने अध्ययन द्वारा यह सिद्ध कर दिया है इनमें से अधिक प्रमाणिक और मानी हुई प्रवृत्तियों के प्रतिकूल है।' बीसलदेव रासों आद्योपान्त श्रृंगारिक काव्य है इसके श्रृंगारिक वर्णनों में कवि का मन म रमा है। इसकी प्रवृत्aिnt वीरगाथा की नहीं है तथा इसका रचना काल संदिग्ध है। हम्मीर राम्रो में हम्मीर शब्द आपत्ति व सहजनक है क्योंकि वह एक ही राजा के लिए प्रयुक्त न होकर अनेक राजाओं के लिए हुआ है। जयप्रकाश नोटिस मात्र में प्राप्य है। स्वयं क्ल जी ने भी इसका केवल नाम की छूना था। अतः यह कहना कठिन है कि वह हिन्दी में रवी भी गई होगी। यह भी सम्भव है कि इसकी रचना अपड में हुई हों क्योंकि उस युग में माह की सामान्य भाषा अपभ्रंथ ही थी। हो रमम छन्द में अवश्य ही वीरगाथात्मक प्रवृत्तियों है परन्तु इसका और विद्यापति का रचनाकाल तो स्वयं शुक्ल जी ने ही वीरगाथाकाल की समाप्ति के क्रमशः ७९ और ८५ वर्ष बाद का स्वीकार किया है अतः इस दृष्टि से तो ये रचनाएं वीरगाथा काल की है ही नहीं। इमान राम्रों और बीसलदेव रासों के रचनाकाल के सम्बन्ध में श्री मोतीलाल मेमरिया ने पुष्ट प्रमाण प्रस्तुत किए है जिनके आधार पर में रचनाएं क्रमशः १८वीं और १५वीं शताब्दी की सिद्ध हो चुकी है। में तम विद्वानों द्वारा प्रायः सर्वमान्य • वह इन पर अधिक विस्तार में विचार नहीं किया है। इस प्रकार क्स जी द्वारा ९ रचनाओं का उल्लेख तो प्रामाणिक नहीं ठहरता। अब रही बात पृथ्वीराज रावी की। विवान इसे तत्कालीन प्रामाणिक रचना मानने को ही तैयार नहीं है। स्वयं जी ने इसे बाली ठहराया है। डा० राम कुमार वर्मा का कहा है कि १(अ) देखिए- राजस्थानी वर्ष ३ अंक ३ में भी अगरबन्द नाहटा का बीसलदेव रासो या पृथ्वी रा (ग) नागरी प्रवारिची पत्रिका वर्ष ४४ अंक ४ में श्री अमरचन्द नाइटा का देव माणरासी ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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