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________________ ३०४ मयबरेहा सुदर्शनपुर के राजा मणिरथ के भाई युगबाड़ की रानी थी | मणिरथ ने उसके असाधारण सौन्दर्य पर आसक्त हो उससे प्रेम का प्रस्ताव रखा। सती ने उसकी मार्ग ठुकरा दी। बसंत क्रीड़ा के बहाने एक बार युगबाहु सदम्पति उपवन मैं गया। मणिरथ ने धोसे से वहां पहुंचकर उसकी आत्मा हत्या कर दी । मयणरेका जिनधर्म को प्रेम करती थी। उसके पुत्र का नाम चंद्रकुमार था। पति की हत्या के समय वह अंतस्था थी । उसी स्थिति में वह वन में निकल पड़ी। इधर मणिरथ को भी सांप ने काट लिया और वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। पुत्र प्राप्ति होने पर मयरेखा नदी में स्नानार्य गई तो एक हाथी ने उसे उछाल दिया और एक विद्याधर ने उसकी रक्षा की तथा उसके साथ प्रणय का घृणित प्रस्तावरखा। इधर सती के सदय उत्पन्न शिशु को यक पद्मरथ नामक राजा ले गया और बड़े होने पर वही नेमिराज राजा हुआ। कद्रयत्र भी सुदर्शनपुर का राजा बनाया गया। सती मयणरेखा ने इधर दीक्षा लेकर विद्याधर से अपने वील सतीत्व की रक्षा की और उसे कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। अन्त में उसके दोनों पुत्रों ने भी अपनी साध्वी मां सुव्रता (मयणरेखा) से ज्ञान प्राप्ति कर दीक्षा ग्रहण की। इस प्रकार सती नवनरेखा ने अपने शील की रक्षा की । कवि को इस करुण कृति की रचना में अनेक स्थलों में काव्यात्मक वर्णन करने का अवसर मिला है। रचना में अनेक मार्मिक स्थल है। प्रारम्भ में ही कवि नेमणरेडा के सौदर्य का मकित वर्णन किया है: धारावी ------- ------- --------- वह ठीका वनदेवी, राममर जिन ने करी उसके इस प्रकार के regate विहरवी बिन मनहर मर्मती से मर मम बीड या बहुमती भय बालवार देवि घरि कावलि हा बहती (ε-c) करम िलीला करडी, सी जिन किंपि भवंती परमविर रोक गया उसने अपना कुलस्वाम उस रे से क्या कवि ने उन दोनों के उत्तर प्रत्युत्तरों को बड़े ही " -
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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