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1 मयणरेहा राम्र 1
हिन्दी जैन साहित्य में जैन वरित नायकों की ही भांति जैन साध्वियों और मादर्शनारियों (संतियों) पर लिडी गई अनेक रचनाएं उपलब्ध होती है। मयमरेडारास जैन आदर्श राजपुत्री भवनरेखा की जवन क्या है। प्रस्तुत रास ५ ठवणि में पूरा हुआ है। सदियों के जीवन चरित वर्णन की परम्परा भी अब प्राकृत और अपभ्रंश काल से ही मिलती है। १३वीं से १५वीं शताब्दी में राय और चतुष्पविकाओं के रूप में अनेक कथा काव्य मिलते हैं। पूर्वील्लिसित चन्दनबाला राम की भांति मयवहारास भी सती मदनरेसा के सतीत्व, नारीत्व और पतिव्रत्य जीवन की मार्मिक और करूण कहानी है। प्रस्तुत रास जिननमहूरि की परम्परा पुस्तिका सं० १४२५ से प्राप्त हुई है रचना की पति अमयीन ग्रन्थालय में सुरक्षित है।
कृति के रचनाकार का नाम कहीं नहीं मिलता है। राख की अंतिम पक्ति
में दो बार र शब्द का प्रयोग हुआ है:
सलह यह वयर रमन जिव मूल न जाए
हम जिम
बी कवि कहण न नार
अतः बहुत संभव है कि वह वही रचनाकार हो, पर फिर भी स्थिति यदि नहीं की जा सकती।
उत्तरा की यह कृषि
काव्य काव्य की दृष्टि महत्वपूर्ण है। इस रचना का
३ बाबा प्रवाह, और था की दृष्टिसे
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प्रारम्भिक मैच प्रति का मध्यवर्ती पत्र प्राप्त नहीं होने से उपलव्ध नहीं होता । प्रारम्भ दही रचना प्रारम्भ होती है।
नहीं मिले और
१-४ ३० ९६-२०३ पर बतियों के दो राम्र
चीर्षक लेख
* विस्तृत विवेचन के लिए दिन- महावती मदनरेखा के नाम ०१ बी नवनरेखा: प्रकाशक श्री जैन हिला मंडल, रतलाम श्री जी महाराज, ११५०० ११८८
१- देवी