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*वाय वद्धापक अतिहि सोडाणं रिसह भूमणि रत्नी आम प
भविजन कलस कंचन मय मंडिबले ए
लुक्स जलंजलि देवैति कुसुमंजले
मंति दीप रीम जीम उतारंति
जल लवण मम्हण करेति सामी सुगंध जले
कपूरि पुरि प्रीय तिमि कीयलि मृग माथि महण त्रिजग गुरु
गुण मिला देवा चिदेव जोउ वेलवउ सेबत्री पाडल बहुल
कुसुम परमल विपुल पूजते । ।वाय वद्धमनु । ।
इसके अतिरिक्त गोत गोविन्द की २७ मात्राओं की देशी सवैया पद्धति में दो छेद इस रासे में मिलते है। इन सवैयों का प्रयोग पहले गीत गोविन्द में ही मिलता है:
*राजल कंत । सहि नाचिनर सहिलडीए ललागीय गिरिनारे
राजलिवर इलिनामपर सामला संसारो । तहि नाचिनए ||
अंग पक्षालि सुगयंदमइए जल पहरीय धोति प्रवीय
इन्द्र महोत्सव आर्यमी तहि बयठलि बहु धनवंत । तहि नाचिनय सहि० || और इसके पश्चात् कवि ने राम के अंत में देशी पद्धति में दोहा का वर्णन किया है वह भी अपने ही प्रकार का है जिसकी एक योजना में भी वैविश्व है:
afe मा मोर पूरी भक्लोईम जगन्नाथ
साव पूजन इहारीय वलीका थम चुकी बाथ। यदि नाबी क्लीवा गई गिरिनारि
सोमनाथ वेद यह मंदिर की बान
far पीया
मम रहा कि भगड़ ईम ।। तहि ना० ।।
पिया
हि हरीबाला बूढा रे सूरवाहे संपत मनीला बूढारे उपमा राय में मीदों के भौतिक प्रयोग है। कविने दोहा रोला, दिदी, पोरा बाद में रास रखा है। की व व मावा में बीबाई या ५ कड़ियां रोता की है। वी ९वीं में क्रमशः १० कड़ियां दिवमदी की