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________________ ३५० उनका क्रमश: अध्ययन इस प्रकार है: पेड़ रास में छंदोंका वैविध्य दृष्टव्य है । एक तो लोक भाषा और दूसरे छंदों के बदलते क्रम ने काव्य प्रवाद को बढ़ाया है। इस कृति में चालू रोला दोहा बौपाई और चौपाया तो है ही नवेछंदों में सवैया गुजराती कविता * सर्व प्रथम प्रयुक्त हुए हैं। गुजराती कविता कहने का कारण यह है कि जयदेव के गीत गोबिंद के पूर्व प्रयुक्त स्वैयों में तो देवी पद्धति थी की परन्तु इस राम में सवैया में विविधता लाने का प्रयत्न है। इसमें बालू भाप के पदों में कुछ मात्राएं अधिक दी है और कुछ मात्रा बढ़ाये हुए छंदों में त्रिभंगी छंद की भांति यति अनुप्रास जैसी पद्धति प्रस्तुत की है। ' त्रिणी छेद ३२ मात्राएं होती है। यह दस होता है आदि में जग ८,८६ पर यति और अंत में गुरु वर्ष का होना ( । ) वर्जित है । इसके शास्त्रीय लक्षण माने जाते है। उदाहरणार्थ: वाम्मीय निशुगर लोय कि संघ समभवीजग प्राण वीजक परियत्ति भीमा लाइ लाइ धन कण क्लब स्लीय रंगि राम हवं नवरस, नवरंग नमी परे सिमी जो करई निरंतर परे परे एक विशेवशद इस रात में मिला है। वहीं मि कहलाता है। कही राय में बिह प्रकार का उत्स प्रकार कवि ने इस पद्धति को सदन कहा है। चकार वाले बद में लवण के पश्चाद जो जाता है, ना सोरठा है और उसी के साथ कड़ी में दो परिचित होता है पर उत्तराईच में उसी पंक्ति में बार बार नामी है। इसके बाद देशी सवैया का प्रयोग है। के बार प्रयोग ही विष्टि है १- मापन कवियोः श्रीवास्त्री ०२०४
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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