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आदि के पद मिलते है। कुदा काव्यात्मक सरस स्थल दृष्टव्य है:
"देवाइई बातीय, मयणि विसालीय, दितीय वाली,रंगि फिरती हरिस भरे ताहि बेला नाबइ मेल बहुमत बेला वाला मोल लड्डा रसि रमई' कामिनी पामिपि पवल दियंती गायती गुण जिपबरा अति माह मात्र समाह वरीयल *नि गुती व है चारा डा रवी बाडी, नवा नवेरा दाई मेहण गण सथन
व घमा धमेरा सम विवरा सति न दीबई अखि पुष बइद चयन की अगमितता, सरसता तथा गीतिमा के साथ साथ कवि ने रास कीड़ा का महत्व स्पष्ट किया है.
"रास रमेवर जिन पुषि ताल मेब वियारे
संघ तलायन रोपिठ व समगिरि विगिरि मेविस अनेक आलंकारिक इक्वियां भी रास में मिल जाती है।
() पिर पड गरव करेइ लीगइ राउत छ धई (२) मनूब जमा हवं सह करीज लिविय यौवन ला लीजा (0) एक चित सपि ममान जाम () चिम चम का बट्टीयर पामिर बाबर
Nमर बार समिविवार साथ ही नारिणी माय मामिनियों मारवाणारी बाब या कीड़ा के साथ मिला और बीमामा वर्णन है।'
इसी प्रकार श्रीमद हरिरारा गधारमा स्थल भी गनीम
राबरला वेश्य, गाने, कीड़ा करने और इत्यापन माग पो. एरा को पडा, गुणा,मावि जिण हरि बेड
अनि पो व ए तीरथ प वीरप एडीरण
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-प्राचीन कर गया
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