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ये दोनों कृतियां प्रकाशित है तथा इनमें पेथड और समर सिंह की दानवीरता, पराक्रम, और शौर्य, सीधाद्वार तथा संघ का वर्णन है। दोनों रासों में से पहले का लेखक और समय अनिश्चित सा है पर प्राप्तवहिरंग प्रमाणों के आधार पर इसे सं० १३६३ की रचना मानी जासकती है। पेथहरास की पूर्णता पर श्री शास्त्री के०का शंकर प्रकट की है।' यो रचना की पुष्पिका "इति श्री प्रागवावंश मौक्ति काव्य पेड़ रास समाप्त" को देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि लक्ष्य भी पूरा हो गया है अतः रचना को
रचना अपूर्व नहीं है। रचना का अपूर्ण कहना अदिग्ध ही लगता वस्तुतः शास्त्री जी का अनुमान बहुत ठीक नहीं है। कवि मंडलिक पर भी मत वैभिनय है। पर मंडलिक का प्रमाण रास में मिल जाता है।
कृति का ऐतिहासिक दृष्टि से भी बड़ा महत्व है। कई ऐतिहासिक पुरुषों यथा कर्णर्वपैल, बंगार, जादि का वर्णन भी मिलता है। श्री स्त्री इसके कती के विषय में लिखते है कि- "या तो इस काव्य का रचयिता ही बंगार है या वह नहीं है तो मंडलिक का पिता बेगार होगा और वह वृद्ध होगा अतः मंडलिक ही इसका करना होगा। बंगार की मृत्यु के प्रमाण तो वि०सं० २३१६ में ही मिलता है।
जो भी हो, कृति के एकाकार और स्वना काल दोनों की स्थिि अस्पष्ट है। प्राप्त प्रभावों के आधार पर मंडलिक को ही इसका राकार कहा जा सकता है म काका १० माना जा सकता है।
पेड़ बचा और वाल की
मावि बली था । समरसिंह का यह भी धड़ से कम नहीं था। पेड़ और सगर दोनों दानवीर पुरुषों ने वैध निकाला था। पेड़ राय में कई स्थानों पर क्रीड़ा बाल, लकुटा राम, नृत्य संगीत, गान
१० आप कवियों की के०का० शास्त्री, पृ० १९७
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