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नेमिनाथ पर र काव्यों की परम्परा अमव से ही मिलती है।अपशितर रचनाओं में दो नैमिनाथ जैसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व पर सैकड़ों की संख्या में ग्रन्थ रचे गए है। कवि ने नेमिनाथराम में नेमिनाथ के परित पर प्रकाश डाला है। रचना शेटी है, कुल मिलाकर ५८ छंद है पर कवि की काव्य प्रतिमा की परीक्षा इसी से हो जाती है।
नेमिनाथ के स्यालय पर आगे विस्तार में प्रकाश डाला जाबमा कृति का मल्याक्न की प्रस्तुत किया जाता है। मेमिकमार जैनियों के २ तीर्थकर थे। उनका राजकुमार होना तथा शक्तिशाली, बीर, परामी होकर भी संसार से वीतरागी हो जाना, त्याविवाह के अवसर पर अपि नयावना राजमती को छोड़कर बल देना बड़ी भाश्चर्यमय घटना है। राजमती भी उन्हीं के चरणों में जाकर दी प्रहण कर लेती है और अंत में दोनोंमहानिर्वाण प्राप्ति करते है।बारातियों के लिए जीनित पानों का वध किया गकर भोज्य बनाना आदि बादों ने उनमें वैराग्य उत्पन्न कर दिया। नैमिना श्रीकृष्ट बलराम पाई ये था यादब कुल में सबसे सर्वशक्तिमान थे।
राम के अध्ययन से शाम होता है कि रचना जन भाषा में लिखी गई यो वर्णनात्मक और मेब तस्व प्रधान है जो सम्भवसा माने और खेलने के लिए ही रखा गया है।
प्रारम्य गावर रवि ने पिनार (बरिष्टनेबिन मन उसके पिता नविय बौरीपुर की पारानी शिवानी का वर्णन किया है।
बायका मिनार साधारण पराम्मी । सो को ही पनि गमका कुबकी भावाला में बार मोनों कार की बधा हीला पात्र ह
मा जित्यन्त पनी हुए। जिनेश्वर मिनाथ समाचारमाला परा वर्षम दृष्ट्वय है।
•होगा निगा विक मरो जिब मन दुनीयक पर परिहार पर बेन्च, वृषा नेमि गुमाय ॥