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________________ २७७ प्रारम्भ में ही कवि मंगलाचरण करके आगे बढ़ता है। मंगलाचरण की परंपरत भारतीय प्रबन्ध काव्यों की प्राचीन परंपरा है। कवि ने गिरनार के सौन्दर्य के कई मधुर चित्र खीचें हैं। अनुभूमि की सरसता उन्हें और भी मार्मिक बना देती है। कवि गिरनार का संसार यात्रा के साथ रूपक बांधता है: १ जिम जिम चढइ डि कडणि गिरनार, तिमि तिम ऊठई जणभवण संसार जिम जिम के जल अंगि पालाट तिम तिम कलिमल सयल ओक्ट्र वही की शीतल वायु तीनों वाप हरण करने वाली है: जिम जिम वायड वा तहि निम्भर सीयल तिमि भववाडी तवणि तुइ निम्बलु पक्षियों के मधुर वर्णन, काकली की मिठास, मयुर का कलरव, अमरों का गुजार और निर्करों का नाद सारे प्रान्त को कंकृत कर देता है। वर्णन की ध्रुवमयतत्मक २ और काव्यात्मकता इष्टव्य है : "कोयल कलयलो मोर केकारओं सुम्भर महुयर (ह) मडर गुंजारवी जलद जाल वाले नीरनि रमाउल रेडर, उज्जिल सिडर जति कल सायल वहल बहु धाङ्ग र मणी, जमल सोबघून मइ मे उपी जत्थ देति दिवस ही सुंदरा महिश्वर मध्य गंभीर गिरि कंवरा जाइकु हितो कुछ दीवा दस दिति दिवसोकरि तारा मंडल मेयों के अरु समूह से प्रवाहित रवीय निर्भर मलिकम्मल गिरि श्यामल free की शोभा अनेक धातुओं एवं रसों से युक्त स्वर्णमयी मेदिनी अर्थात् औषधियों से परिपूर्ण वसुंधरा और विकसित कुन्द कुसुम का वल मानों विवाओं का नवत्र मंडल है १० वही ग्रन्थ दिवसीय कम । १० ही ० ३ २ पद ४। ३- देवगिरि राव: डा० हरिवल्कम पावावी ॥ ३
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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