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आदि उपमान उत्तम कोटि के तथा कवि की उत्प्रेक्षाएं भी अति नूतन हैं।
समास बहुला, अनुप्रासात्मक शैली और सरस पदावली से कवि ने नीरस पत्थरों में से भी रस के स्त्रोत उमड़ाए है। निम्नांकित पक्तियों के प्रकृति वर्णन से जयदेव के गीतों के शब्द चयन व कोमल कांत पदावली का स्मरण हो जाता है:
● मिलिय नवल वलि दल कुसुम फल हालिया,ललिय र महि लवय चलण तलता लिया गलिय थल कमल मयरंद जल कोमला विडल सिलबट्टसोईति तहि संभाला
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प्रकृति वर्णन में कवि ने नाम परिगणनात्मक रूप को प्रस्तुत किया है। अनेक वनस्पतियों का परिगणन उसकी विशाल शोध दृष्टि एवं बहुजता का परिचायक है शब्द अनुप्रासात्मक और नादात्मक है। एक ही अक्षर से प्रारम्भ होने वाले अनेक वृक्षों के नामों को व कवि की बहुलता लिए:
"अंगुण अंजण अंवितीय अंबाउथ अंकुल, गंव अंक भागलीय अगरु असोय महल्ल करवर करवट करुणतर करवंदी करवीर कुडा कडाड करीब कह कर कमल कंपीर बेल बंजुल वउल बडी वेउस वरण विहंग, वासंती वीरिषि विरह, वासियाली वन बंग सीम सिंवलि सिर (स) सभि सिंधुवारि सिरखंड, तरल पार साहार सय सागु सिग सिण दंड
पल्लव फुल्ल कल सिय, रेहह ताहि बमराड, तहि उज्जित तति पनि यह
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उत्कट नि उत्वा बादि अनेक अलंकारों का स्वाभाविक कर अनुसार रूप व उत्प्रेवाओं की यो घटा डी
अनुप्रास, गगक frore हुआ है। कृति में
उनही पड़ती है:
ate: (१) निम्मल मल विहार परे
(२)
(३)
विराम बोग सुन्दर बार
वाकुल्
१० बड़ी, पद ५ ० ३
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