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अंबयो सिरे सिरिमाल कुल संभवोपाल मुविसाल तिणि नाठिय
अंतरे धवल पशु परम्व मराविय १ जयसिंह देव ने सौरान को गार का वधकर अधिकार करने के बाद साजण मंत्री को वहां का बन्डनायक नियुक्त कर ०.८५ में गिरनार पर नेमिनाथ का मन्दिर बनाया
"सिरि जयसिंहदेव पवा पुहवीसरु, हावि घोरतु तिमि राम मारत
अहिम मे मिनिषिद, शिणि भ. कराविक इनके अतिरिक्त मालय के पावड शाह का स्वर्णिम नगाड़ पाना बनाने का उल्लेख कामीर के अजित एव रतन नामक पादों का वही संघ लेकर जाना था वस्तु पाल तेजपाल का रिषदेव मंदिर मादि बनवाना- रास के ऐतिहास महत्व को स्पष्ट करते है।
प्रस्तुत रचना : कड़वकों में विभक्क है।डवक कोई काव्य स्म या स्वतंत्र छंद नहीं होकर सर्ग विभाजन के सूचना जब्द है। अपभ्रंश के संधि काव्यों में अनेक हक मिलते है। साहित्य दर्पणकार ने अपनव कायों में कड़वक सों को कहा है। परन्तु परम चरित, हरिवंश पुराण आदि ग्रन्थों में तो सर्ग संधि कहलाते है। प्रायः इन कामों में अनेक सन्धियों होती थी। और पक पक धि में अनेक कामक होते थे। इसरे बब्दों मक मिलकर एक संधि को बनाये पि को दबकों का एक समूह का वा सभी
का को विदेश दिया। उसके अनुसार दो बार्षिक पवाब
की समाधि का जन्म व रामों को वर्ष के पक भाम के अन्नबीर बरे नवे वर्ग के प्रारम्भ का शमा मना है। प्रत्येक
1-प्राraj.anीया -बाप कवियों:पीकात्री १८ - निबंध बरिणामासानिधान *ध्याचा कड़वकान्वादिति
स्वापामा ।