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परिवर्तन परिलक्षित हो गया मंदिर शिल्प कला तथा उसकी प्रति कराने वाले धनपति श्रावक का यह गान वर्णन करना भी परास प्रारम्भ हो गया था। रेवतगिरि रास की ही भाति १५वीं शताब्दी में हमें कवि राम वारा ० १२८९ में लिबा हुआ एक आइ रास' मिलता है जिसमें आबू के प्रसिद्ध तीर्थ व संघवा आदि के वर्णन है। रेवंतगिरि रास में भी सोरठ देश के प्राचीन मंदिरों तथा प्रसिङ्गच पौरबाड कुल या प्राण्बाट कुल का वर्णन है परतुपाल और तेजपाल इसी कुल के दो प्रसिद्ध ऐतिहासिक पुरूष है जिनपर १५वीं सताइदी तक रचनाएं उपलब्ध होती है। अत:रास की ऐतिहासिकता के अनेक अंतरंग तथा बहिरंग प्रमाण मिलते है। राजा भंगार,जयसिंह देव एवं गुजरा प्रसिद्ध राजा मारपाल का भी प्रस्तुत रास में उल्लेख है। जो इतिहास प्रसिद्ध व्याक्तिमय और अधिणियों के अनेक चित्र जैनियों के प्राचीन तीर्थकरों की मतियों के साथ आज भी बने मितरो है। स वर्णन स्वतगिरि रास में भी मिलता है। इसके अतिरिक्त अनेक बहिरंग प्रमाण राम की ऐतिहासिकता सिद्ध करते है। कुछ टिप्पणियां इस प्रकार है:( तेजपाल गिरिनार तले केवलपुर निमामि ५ गपाल ने वह अपनी मा के मार पर मापाराम विकार मियालय अलमल
बनवाया। (२) वर्ष रेखा नदी किनारे चमरियामोवर का व्यय मंदिर भी उस समय पाया र कवि के
प्र विा है। अतिरिक्त भारपात की पाती बने को राम समानार१० में गिरनार
कुमारपास पास निमन मंडन
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मिर राजस्थानी पूर्व की अगरचंड माडा का समायरामपनि प्राडबाट तिहास (भूमिका भाग) की प्रारदमाटो। रागिरि राम, डा. हरिकला पावानी. . बी. पानामा विपीका स्त्री . ८