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ताप
रत्न और संयम रत्न की प्राप्ति उस अपूर्व आनंद निर्माण की प्राप्ति हेतु नहीं कर सते? उक्त पंक्तियों में इसी प्रकार की ध्वनि है।
दिठ रयल जं कदम भरिया, हियडा सुन्नइ सहु बीसरियर तउ मुषिवरु मेल्हहि नीसासा, मन् वणी नवि पूरी आसा जं जिण भम्भह किज्जइ मूल, तं तरुणस्तणि पालिस सील इसर वयण मुहियडर घरइ, मयण मोह चित्तह उत्तरह चिंता कि वह हियइ तिरंग, संजमतरु मह स्पइ भाग
धनु धन धलिभद्र सो सामिउ, पाउ पणाई लइ यइ नाभिउ (४०-४४) और मुनि अन्तर्दवन्द, आत्म गुलानि और पश्चात से भर जाता है उसकी ज्ञान दृष्टि कोश के गुरु वचनों से मुल जाती है और वह वैश्या कोश के कहने से चरित्ररत्न को हृदय में धारण करता है तथा गुरु के पास जाकर पुनः दीक्षित होता है और वही पुनि स्थूलिभद्र की कृपा से देव लोक प्राप्त करता है.
तमु उपरि मई मच्छक की, तिणि कारणि मई फल पामीम्स तुहु सुर गुरु कोसा मा माया उं पहबो विउ आणि गये मई जणि तउ क्यिा अकम्भू मालि वलि गउ माणुस जम्पू वैया कोमा बोल्ला , अग्जिन मुनिवर मन करि क्षेत्र चारित रबनु बिड परेशी गुरु पारि बाठायम बहुत माल वय पालकि कब पूरब दिया परेबि
प्रतिमजिम धम्म कोपि यहोरिपा बावि (४५-४०) बस्तुबा इसी प्रकार कवि ने स्थतिमा बमित जीवन की दिव्य सुबमा पर प्रकाश डाला है। रामी पी पि पर गार पाने या कीड़ा करने केस पर प्रकार की मालिषा के उत्कृष्ट चरित्र पर मुनि की
या के बारा प्रकारान्सर प्रकाश डालना ही कवि का भव्य है। कोश गै बागी पक के सामने वाली है। ४.दों की इस छोटी सी रचना में कवि ने यात मार रामा कमी माप के साथ साथ अलिबल बावस्थानी ।