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कवि के वाक्य सरल व शब्द वयन प्रभाव प्रवण है। कवि ने क्रोध काम, मद चरित्र अंतर्दृन्द आत्मग्लानि तथा पश्चाताप के चित्रों पर सम्यक् प्रकाश डाला है। एक दो हथों को छोड़कर पूरा रास चौपाई छेद में लिखा गया है।
जहां तक कथा रूढ़ि और मौलिकता का प्रश्न है प्रस्तुत रास बड़ा महत्व पूर्ण है। १५ शताब्दी में मिलने वाले स्थूलमत्र राख या स्कूलिप फागु' की मीति कवि ने कहीं भी स्थलिपद्र व कोवा का श्रृंगारिक वर्णन नहीं किया है। अत: काव्य श्रृंगार आंशिक रूप से ही जपाया है। अंत में कृति निर्वेदात हो गई है कवि ने वरकवि की क्या, मुनि की ईर्ष्या, नेपाल जाकर काम विमोहित स्थिति में रत्न कंवला लालना आदि घटनाएं अवान्तर रही हैं, जिसमें वह पूर्ण सफल हुआ है।
छोटी छोटी सुक्तियां- यथा-भामिषि विरहु क्रिम व भाजड, बल्ि धपकन रयण चविषु, अस्ति sलाहल रयति नामित, सयल इम कैद बणि चित उम्मलियं, सावर्ण सलिल मुणि सील संबोलिये नम भरवेविणु मिरिय कुरवाने, अकरनइउ संजय भाटुष्पाला इह गइ संधु करीरिहि भाजइ तथा वारित्त ray fsass परेहि गुरुपास आलोवण लेडि आदि अनेक सूक्तियां है। राम की मुख्य संवेदना पदेशात्मकता है तथा धर्म प्रचार है। बैली वर्णनात्मक है। काव्यात्मकता मेंबर स्थल थोड़े हैं पर पटना वैवि और कथात्मकता ने कृति की का में पर्याप्त सहायता की है।
मिरराव
शव शाब्दी का प्रसिद्ध ऐतिहासिक रास है। रासके रचयिता श्री श्री विजय प्रेम वृद्धि है। का विषय धार्मिक है तथा कवि ने रेवतगिरि जैन वीर्य का महत्वपूर्ण विवेचन किया है। वी के प्रति अपार श्रध रखने वाले कों
* स्थति पर विचार के लिए देविष अता, नई, १९५८ काका एक इन्ड काव्य भी बुकिंग का डीर्षक लेख |
प्राचीन र्वर काव्य संग्रह: श्री डी०डी०५०१७
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