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ही सबसे प्रेष्ठ बताया। इस पर पक मुनि वृध हो गए और उन्होंने भी दूसरा चतुर्मास उसी कौशा के ही जाकर किया। पर ये काम लोलुपत हो गए। कोश ने उन्हे रत्न कंबल लाने नेपाल भेजा। काम विमोहित पुनि ने यह सब किया पर अंत में कम से ही नई हार माननी पड़ी। कोश का पुनि को उपदेश, मुनि की काम बिमोहित अवस्था, रत्न कंबल के लिए अनेक कष्ट पाने पर पुनि की उससे कामप्ति की याचना गोशा बारा उनी असंत्रा, संयम श्री का महत्व अ र स्थतिमद्र की जितेन्द्रिय शितिक स्पष्टीकरम करना आदि अनेक चित्र कवि ने बड़ी ही मार्मिकता से उरेहे है जिनकी भाषा प्रवाहमय भाव प्रवण मरल तथा चित्रात्मक है। श्रावण भाद्रव में कामोत्पत्ति तथा न मन की चंचल स्थिति और मुनि की विचलित अवस्था तथा कोशा के सौन्दर्य के प्रहि हुए व्यामोर का सरस वर्णन देखिए- वेस ससि वयणि मिग नगणि नब जोवमी, मुविधि परिजिविहि
परि दि पुणि लोपणी भावह पुषि का षि देश में दुल्लही, अम्हारि गनिक परिजा
इमि गुमा बज्य मनपर गुरु वणव पररावा कार, बेड पर पारस पर
पिबामिय मा सतिस पुषिबी मोतिय, बक इस ध निरिए उम्मति भामा पुल भारो मायो, पारित पाटरमयण भजये
व परिव परि पिहिमाल सागर बनिकि परि पिक्सवित जिए पार पोलियो नि.मा, अत्य विशु वेस 'निहर का
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और निति नि बरसो गर उनि कोमामा जी, गमकी इसी लिपि या न बकवि में बनी रत्म