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पहली प्रति भी १५वीं शताब्दी की ही है।
स्थूलभद्र रास के नायक स्थूलभद्र पर काव्य लिखने की परम्परा पर्याप्त प्राचीन है। स्थूमि का जीवन आचार्य हेमचन्द्र के परिशिष्ट पर्व में मिल जाता है।" संस्कृत में भी इनके जीवन पर अनेक ग्रन्थ तथा सूर्यचन्द्र रचित गुणमाला महाकाव्य आदि रखे गए हैं। कालान्तर में तो गुजराती, राजस्थानी या पुरानी हिन्दी में स्थूलिप पर सैकड़ों की संख्या में रवे राख फागऔर गीत मिलते है। सं० २८९ मैं शकटार का जीवन चरित्र हरिषेण के बृहत्कथा को केशकाल युनिकथानकापृ" नाम से प्रकाशित है। अतः इस राख की कथा वस्तु के लिए वह कथा कोक व परिशिष्ट पर्व आदि ग्रन्थों से पर्याप्त सहायता की जासकती है। राख के कर्ता ने अपना नाम स्पष्टनहीं किया है पर अन्त में एक शब्द • जिनधाम" आता है जिससे अनुमान किया जा सकता है कि लेखक का नाम जिनधर्म सूरि था। स्वर्गीय श्री मोहन लाल देसाई ने प्रस्तुत रासकता का नाम धर्म दिया है। साथ ही उन्होंने इसका रचना काल भी ० १२६६ के आस पास बढ़ाया है।
स्थूलिमद्र राम घटना प्रधान है, जिसमें कवि ने अनेक कौतूहलों का समावे किया है। रास का प्रधान है। बमपि राज स्थूलभद्र के जीवन से उनकी erent we ffer] बन्ध नहीं डालता परन्तु कवि ने अपने को अवान्तरनामों का काम को टके
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अवतार ही विवध कर दिया है।
कवि में दास का प्रारम्भ शासन देवी और बागीश्वरी का स्मरण कर किया है तथा प्रारम्भ में ही स्टार और रवि पंडित का दिखाया है। संघर्ष कारण केवल बया कि रवि की गाथार्य राजाओं को बड़ी प्रिय थी और मंत्री कटार (मता) की राजा इद्वारा बरकवि को दिया आवर ठीक नहीं लगा। उसने वपनी मालिकाओं द्वारा उसकी गाथाओं को याद करवा दिया एक को एक बार दूसरी को दो बार और डीसी को तीन बार इस क्रम सेक्टर की