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________________ Bendon& २६५ कवि ने रास की मुख्य संवेदना को अर्थ धर्म और काम मोड में से अंत मैं कैवल्य की प्राप्ति से सार्थक किया है। जो काव्य के प्रयोजन है: "सेपिणि जिप दिन्न दाणु बीर जिनंदह केवल नापु चंदन पढम पवत्तिणिय परमेसरह निव्वाणह जंति बत्तीसा सय सिम्स हि अब सिद्धिति मार्गति १४ अंत में कवि ने अक्षत पर सत की विजय दिखाकर रचना के मंतव्य पवंस के उद्देश्य को स्पष्ट किया. यह राष्ट्र पूर्ण वृद्वियहि जंति, पाविहि भगतिर्हि जिन हरिर्दिनि पढड़ पड़ाव जे सुबह तह पवि as महयह जंति जार नउरिं मास भणइ जम्मि जम्मिड वउ सरसति ||३५|| यह रास बेलने, गाने, पढ़ने, पढ़ाने तथा सुनने के लिए लिखा गया है। रचना की शैली वर्णनात्मक, सरल व स्पृहणीय है। भाषा की सरलता व शब्दावली का प्रवाह दुष्टव्य है। जन पावा काव्य की दृष्टि से कृति का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। वीं शताब्दी की कथा तथा पटना प्रधान इंद्रियों में भाषा व बैली की दृष्टि से चंदनवाला रास का महत्व अपने ही प्रकार का एवं प्रशंसनीय है। वस्तुतः ऐसे ही रात में मानवता, वारिश्य निर्माण, स्त्री सम्मान वा जीवन की बहुमुवी प्रगति का संदेश दिया है। 21 स्कूतिमद्ररा स्वाद में वाला राव की ही पाति एक घटना व कथा प्रधान स्थूलिप राह मिलता है।स्ट्रेलिया का जीवन चैन नायकों में विनाथ और जम्बू स्वामी की मार से स्थति रहा है। यूनिट और कोवा वैश्य के प्रति अनेक मारक का उपदेश प्रधान स्थानों की रचना की गई है। प्रस्तुत रचना की दो है या दूसरी के १४७ में किसी पूर्व है और उप है। जिनमें पाली भा में रवि है। पीरइट का ि
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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