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________________ २६० धम घसीय शयई धार धावति धीर बीर विहंडए सामंत समहरि सम न लडई मंडलीक म मंडए १ (१४५) प्रस्तुत राम में यह द कई बार आया है। . , . सरस्वती धवल: इस छंद को धवल भी कहते हैं। इसमें चार चरण होते हैराठीउ राउत बाइ पावालि विजाहर बिम्जा बलि चक्क पहुचए पठि तिणि तालि बौलए बलवीय सहस जसो २ रे रहि रवि पीउ राउ चित्धु साहसि nिg मारिए 'सिड्डयण कोइन अबइ अपाय अय जोखिम वीगइ जीवहरविधि प्रस्तुत राम में ठवणि प्रयोग कई जगह आया है। जो संस्कृत स्थापनी अच्छ का अपश है। या कोई विशेष नहीं है। मात्र नो द की स्थापना करने वा द बदलने के लिए प्रयुक्त हुआ है। वस्तुतः परतेश्वर बाहुबली रास में इतने ही छव प्रथम हुए है।क्षेप में रास का अनुशीलन यही है।आदिकालीन सिदी जैन साहित्य की रास परम्परा अन्य भव काय बों या काव्य परंपरागों में भिन्न है। मी, बी और सी प्रसादी के मेक प्रकाशित भागमा aafar TEAM प्रकों प्रस्तुत किया जाना। मेक देव पगारों मइयावधि उपकड़ी जैन राहों में सबसे प्राचीन ही भररोबर माहवही राम।। नीमा बारा मजल्ययन मागे भारतीय विमानतीनिमि विजय वर्ष २ अंक १ पृ. १४ पद १४५ देय दिी गीत लेखक रास परंपरा और परोवर बाराबही रास मध्यमीका -देखिए राजस्थान पारदी पाम01-- १०४.11 परीबारदमाटा काबकविनापरवानवाला
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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