SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६१ के पृष्ठों में प्रस्तुत किया जायगा । ये उपलब्ध रासों में काव्यात्मकता, कथा कढ़ि बारित्रिक उत्कृष्टता, शैली छंद और भाषा आदि सभी क्षेत्रों में अत्यन्त महत्व के है। विवेक तौर से इनकी "रासजन्य प्रवृत्तियां किसी न किसी रूप में सुरक्षित ही मिलती है। कोई रासवभिनन प्रधान है तो कोई क्या प्रधान । किसी में महापुरुष के चरित्र का विकास व गुणगान है तो कहीं धर्म के उत्कृष्ट a free art को गेयता में आबद्ध कर जन साधारण के लिए बम बनाया गया है। वस्तुतः मात्रा में क्रमगत तरलता और विकास प्रस्तुत करने में इन कृतियों का विवेषहाथ है। जिनका शताब्दी क्रम से विवेचन किया जायगा । सामाजिक कथा वस्तु को प्रस्तुत करने वाले ऐसे ही राखों में एक वीं aarat का एक महत्व पूर्ण रास बन्दन वाला रास है। जन भाषा में प्रसिद्ध जैन कवि आe ने इस कृति की रक्षा की है। चन्दनबाला जैन विकारों में एक जादर्श एवं चरित्रवान महिला भक्त रही है। जिसने अपने ब्रड्बरी सतीत्व, संयम और पवित्रता के लिए ही स्वयं का उटवर्क कर था। कवि आशुं स्थानी है / बौरराजस्थान के डी नगर जालौर में इस रास की रचना हुई है। वह रचना जैसलमेर के बड़े भंडार में सुरक्षित है तथा प्रतिलिपि संभव जैन वाय बीकानेर में वो राय अब प्रकाशित भी हो गया है। afe are का एक वीि के आसपास की ही है। परन्तु बहुत अधिक न होने और अधि हो महत्व नहीं है। राव की एक विवेा यह है कि इसमें कृतिके, कवी वा काल, वथा ले न काँव मे कर किया है। कृति की एक ही प्रति उपलब्ध होने १- भारतीयाः श्री विजय जी, भाग तीन अंक १ ० १०५
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy